इंजीनियर डी.पी. सिंह की कोठी दुल्हन की तरह सजी हुई थी। चारों तरफ गहमा-गहमी और खुषी का माहौल था। दो दिन बाद उनके इकलौते बेटे समीर की शादी थी। मेहमान आने शुरु हो गए थे।
समीर की पोस्टिंग गुवाहाटी में थी। वह आज गुवाहाटी एक्सप्रेस से घर आ रहा था। उसकी टेªन शाम को पांच बजे पहुंचने वाली थी ? सबको बेसब्री से उसके आने का इंतजार था।
डी.पी. सिंह मेहमानों के साथ ड्राइंग रूम में बैठे हुए टी.वी. देख रहे थे। तभी टी.वी. स्क्रीन पर खबर आई। लिखा था-“बे्रकिंग न्यूज“, गुवाहाटी से चलकर देहली पहुंचने वाली गुवाहाटी एक्सप्रेस पटना के पास दुर्घटना ग्रस्त। सात डिब्बे पटरी से उतरे। दस मरे, सौ से अधिक घायल। दुर्घटना स्थल का लाइव टी.वी. पर चल रहा था।
उधर न्यूज देखकर डी.पी. सिंह उनकी पत्नी और समीर के छोटे भाई-बहिन का बुरा हाल था। तरह-तरह की शंकाएं, आषंकाएं उनके मन में उमड़-घुमड़ रही थीं। सारे रिष्तेदार और परिवार वाले ड्राइंगरूम में आ गए थे और उन लोगों को ढांढस बंधाने का प्रयास कर रहे थे। हंसी खुषी का माहौल यकायक गम में बदल गया था।
लड़की वालों का घर भी शहर में ही था। वे लोग भी टी.वी. पर यह समाचार देखकर डी.पी. सिंह के यहां आ गए थे। सभी के मुंह पर दुर्घटना की चर्चा, जितने मुंह उतनी बातें।
किसी ने सुझाव दिया कि यहां बैठे-बैठे सोचने से तो अच्छा है चलो दुर्घटना स्थल पर चलकर वास्तविकता का पता लगाया जाये। यह सुझाव डी.पी. सिंह को ठीक लगा। वे लोग कार द्वारा दुर्घटना स्थल की ओर रवाना होने के लिए तैयार होने लगे।
तभी दरवाजे की कालबेल बज उठी। समीर की छोटी बहिन लता ने मेन गेट खोला। यकायक सामने समीर को देखकर वह उसके गले से लिपट गई। वह जोर से चिल्लाई-“मम्मी, भईया आ गए।“ सब बाहर निकल आए। सब लोग हर्ष मिश्रित आष्चर्य से समीर को देख रहे थे। समीर भौंचक्का सा खड़ा था। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि सब लोग उसे ऐसे क्यों देख रहे हैं।
वह बोला-“जब मैं स्टेषन पहुंचा तो गुवाहाटी एक्सप्रेस छूट चुकी थी। संयोग से प्लेन में एक सीट खाली थी और मैं प्लेन से यहां आ गया। मैं तो सोच रहा था कि समय से पहले पहुंचकर मैं आप सबको सरप्राइज दूंगा, मगर आप सब लोग तो मुझे ऐसे देख रहे हैं मानो मैं कोई अजूबा हूँ।“
उसकी माँ उसे गले से लगाते हुए बोली, “बेटा इस समय तुम मेरे लिए किसी सरप्राइज से कम नहीं हो।“
सुरेश बाबू मिश्रा
साहित्य भूषण