बरेली,यूपी। उत्तर प्रदेश के जिला बरेली में एक महिला ने दुष्कर्म का झूठा मुकदमा लिखवा कर दो युवको फ़साने की साजिश में अपर सत्र न्यायाधीश (फास्ट ट्रैक कोर्ट प्रथम) रवि कुमार दिवाकर की कोर्ट में खुद बेपर्दा हो गयी। मेडिकल में शरीर में कहीं खरोंच के निशान नहीं थे, घटना के समय पहने कपड़ों को वह धो चुकी थी। साइबर सेल ने वीडियो की जांच की तब पता चला कि वह उसके पति के मोबाइल फोन से अपलोड किया गया था, जो कि बाद में डिलीट भी कर दिया गया।
वीडियो में महिला उन दोनों युवकों का विरोध नहीं कर रही, बल्कि सहमति प्रतीत हो रही। अश्लील वीडियो आरोपित युवकों से नहीं बल्कि महिला के पति के मोबाइल फोन से प्राप्त हुआ। इन सभी तथ्यों का उल्लेख करते हुए कोर्ट ने कहा कि ऐसा प्रतीत हो रहा कि अन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मुकदमा कराया गया। पुलिस को विवेचना के समय सत्य की खोज करनी चाहिए थी, ना कि दोषसिद्धि करना। जितने कानूनी अधिकार वादी को हैं, उतने ही प्रतिवादी को भी प्राप्त हैं। विवेचक एवं पर्यवेक्षण अधिकारी ने कर्तव्य का पालन नहीं किया। पूरे प्रकरण में वादी महिला के आरोप झूठे पाए जाने पर उस पर 500-500 रुपये जुर्माना लगाया गया, यह धनराशि श्रवण कुमार व गुड्डू को दी जाएगी। अपने ही बयानों में फंसी महिला, नहीं दे पाई कई जवाब कोर्ट में जिरह के दौरान महिला अपने ही बयानों में कई जगहों पर फंसी।
खेत में दुष्कर्म की बात का किया था जिक्र
प्राथमिकी में उसने खेत में ले जाकर दुष्कर्म की बात कही मगर जब बयान दिया तो उसमें उसने गन्ने के खेत में ले जाना बताया। जबकि प्राथमिकी में इसका कोई जिक्र नहीं किया गया था। कोर्ट ने कहा है कि महिला के घर के आस-पास जेठ देवर समेत रिश्तेदारों के घर हैं। फिर भी वह दोनों लड़कों की तरफ से मिली पति के एक्सीडेंट की सूचना पर अकेली चली गई। परिवार में किसी को साथ ले जाना भी उचित नहीं समझा।
कोर्ट ने जताया संदेह
कोर्ट ने इस पर भी संदेह जताया। महिला के घर में पहुंचकर दुष्कर्म की बात पर जिरह के बाद कोर्ट ने कहा कि यदि घर में सास-ससुर व बच्चे हैं। इसके बाद भी कोई घर में घुसकर दुष्कर्म करे। यह बात भी सत्यता से परे लगती है। इसी के साथ महिला कोर्ट में यह भी नहीं बता पाई कि घर में उसके साथ कब दुष्कर्म हुआ। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने पूरी घटना को ही असत्य माना हैं।
दो महीने बाद केस दर्ज कराने पर भी संदेह
घटना के एक साल दो माह बाद प्राथमिकी लिखाना भी संदेह कोर्ट ने कहा है कि सबसे ज्यादा संदेह यह पैदा करता है कि घटना के एक साल दो माह बाद मामले में प्राथमिकी क्यों लिखवाई गई जबकि, इस तरह की घटना में तत्काल प्राथमिकी लिखाई जानी चाहिए।
कोर्ट ने कहा है कि इतने समय में बढ़-चढकर तहरीर लिखने का समय मिल जाता है। संभवता इसीलिए लिखाई गई। इसी के साथ कोर्ट ने टिप्पणी की है कि यदि कोई महिला घर से चार-पांच घंटे गायब रहती है तो परिवार वाले जरूर पूछते हैं कि इतनी देर कहां लगी? मगर इनके परिवार वालों ने नहीं पूछा? सबसे जरूरी कोर्ट में महिला यह भी नहीं बता पाईं कि उसके साथ किन-किन नए लोगों ने दुष्कर्म किया। वीडियो की भी सत्यता नहीं मिली।
– टीम न्यूज अपडेट यूपी