बाल कहानी : स्टूडेन्ट ऑफ़ द ईयर

कृष्णा पब्लिक स्कूल में आज साइकिल रेस थी। यह रेस इस स्कूल का सबसे फेवरेट कम्पटीशन था। स्कूल में प्रतिवर्ष परीक्षा के बाद साइकिल रेस का आयोजन होता था।
इसमें भाग लेने वाले छात्रों को अपनी-अपनी साइकिलों से यह चार किलोमीटर की रेस पूरी करनी पड़ती थी। चार किलोमीटर के रास्ते को गुब्बारों से सजाया जाता था। छात्रों के उत्साह को बढ़ाने के लिए पूरी रेस के दौरान संगीत बजता रहता था।
इस रेस को जीतने वाले छात्र को चैम्पियन ऑफ़ द स्कूल का सम्मान दिया जाता था। जिसमें पांच हजार रुपए नकद और चमचमाती ट्रॉफी मिलती थी। पिछले दो-तीन सालों से लगातार यह चैम्पियनशिप राहुल जीतता आ रहा था।
रेस स्टार्ट होने वाली थी। रेस में भाग लेने वाले छात्र स्टार्टिंग प्वाइंट पर अपनी-अपनी साइकिलों पर खड़े थे। रेफरी के सीटी बजाने के साथ ही रेस स्टार्ट हो गई। मौजूद छात्र-छात्राओं ने तालियां बजाकर रेस में भाग लेने वालों का उत्साहवर्धन किया।
रेस जारी थी। छात्रों में एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ लगी हुई थी। एक किलोमीटर के बाद राहुल सबसे आगे निकल गया। उससे थोड़ा पीछे सन्दीप था। उन दोनों के बीच कड़ी स्पर्धा चल रही थी।
रेस के रास्ते में हर एक किलोमीटर पर एक मोड़ था। राहुल और सन्दीप ने दो किलोमीटर की रेस पूरी कर ली थी और वे तीसरा मोड़ पार करने ही वाले थे। राहुल अब भी आगे था। संदीप उससे पांच-छः मीटर पीछे था। वह राहुल से आगे निकलने का भरपूर प्रयास कर रहा था। तीसरे नम्बर पर अखिलेश था जो इन दोनों से लगभग बीस मीटर पीछे था। बाकी छात्र काफी पीछे छूट गए थे।
राहुल ने जैसे ही तीसरा मोड़ पार किया उसे कुछ गिरने की आवाज सुनाई दी। उसने मुड़कर पीछे देखा। अरे यह क्या संदीप साइकिल सहित नीचे गिरा पड़ा था। राहुल ने अपनी साइकिल खड़ी की और फुर्ती से संदीप के पास पहुंचा।
पता नहीं कैसे संदीप की पैंट साइकिल की चैन में फंस गई थी। जिससे वह साइकिल सहित नीचे गिरा पड़ा था। उसके पैर में काफी चोट लग गई थी। वह अपनी पैन्ट को चैन से निकालने की कोशिश कर रहा था, मगर उसमें सफल नहीं हो पा रहा था। वह दर्द से कराह रहा था।
राहुल एक हाथ से उसकी साइकिल को पकड़कर दूसरे हाथ से साइकिल की चैन से संदीप की पैंट को निकालने लगा। बीच-बीच में संदीप दर्द से चीख उठता। थोड़ी देर की कोशिश के बाद राहुल ने चैन से संदीप की पैंट को निकाल दिया। उसने साइकिल को उठाकर खड़ा किया फिर उसने सहारा देकर संदीप को उठाया।
तब तक तीसरे नम्बर पर चल रहा अखिलेश उनके पास से गुजरा। राहुल और संदीप को इस हालत में देखकर वह मन ही मन मुस्कुराया और आगे बढ़ गया।
संदीप बोला, “मैं अब ठीक हूँ राहुल। तुम जल्दी से अपनी साइकिल लेकर जाओ नहीं तो अखिलेश तुमसे आगे निकल जायेगा।“
“नहीं मैं तुम्हें इस हालत में अकेला छोड़कर नहीं जा सकता।“ राहुल बोला।
“पागल मत बनो राहुल। यह तुम्हारे कैरियर का सवाल है। मैं अब ठीक हूँ, मेरी फिक्र मत करो और जल्दी जाओ, संदीप ने जोर देकर कहा।
मगर राहुल नहीं माना। उसने अपने रूमाल से संदीप के पैर के जख्म को अच्छी तरह से साफ किया तथा साइकिल के बैग में से फस्र्ट एड बाॅक्स निकाल कर उसके जख्म पर एक ट्यूब लगाया और बाॅक्स में रखी एक गोली उसे खाने को दी।
इससे संदीप को राहत मिली। उसने खड़े होने की कोशिश की मगर वह अभी साइकिल चला पाने की हालत में नहीं था।
राहुल ने उसे अपनी साइकिल पर बैठाया और दोनों चल दिए। जब तक राहुल और संदीप वहां पहुंचे तब तक अखिलेश को चैम्पियन घोषित किया जा चुका था।
आज स्कूल में प्राइज बंटने थे। स्कूल का पूरा हाल छात्रों से खचाखच भरा था। इस अवसर पर छात्रों के पेरेन्ट्स को भी आमंत्रित किया गया था।
मुख्य अतिथि के आते ही प्राइज डिस्ट्रीब्यूशन प्रारम्भ हो गया। प्रत्येक क्लास में टाप करने वाले स्टूडेन्ट्स को सम्मानित किया गया। इसके बाद प्रत्येक क्लास में टापर्स को प्राइज दिया गया। स्कूल में सर्वाधिक नम्बर लाने वाले स्टूडेन्ट को एक बड़ी सी ट्राफी मिली। कल्चरल प्रोग्राम में प्रतिभाग करने वाले छात्रों एवं प्लेयर्स को भी प्राइज बांटे गए।
इसके बाद बारी आई चैम्पियन ऑफ़ द स्कूल। इस बार की चैम्पियन ऑफ़ द स्कूल की चमचमाती ट्रॉफी और पाँच हजार रुपये का लिफाफा अखिलेश को दिया गया।
इसके बाद प्रिंसिपल साहब स्टेज पर आए। उन्होंने घोषणा की कि इस वर्ष से हम स्कूल में एक नए प्राइज की शुरुआत करने जा रहे हैं उस प्राइज का नाम है“ स्टूडेंट ऑफ द ईयर“ और इस वर्ष का यह प्राइज दिया जाता है राहुल को।
“क्या ?“ राहुल ने विस्मय से प्रिंसिपल साहब की ओर देखा।
“हैरान मत हो राहुल। रेस के दौरान हम लोगों ने सी.सी.टी.वी. कैमरे और वाॅइस रिकार्डर लगा रखे थे। जिससे हमें पता चला कि तुमने किस तरह से अपनी चैम्पियनशिप को दांव पर लगाकर संदीप की मदद की, हमें तुम पर गर्व है और तुम इस प्राइज के असली हकदार हो।“ प्रिंसिपल साहब राहुल की ओर देखते हुए बोले।
जब राहुल स्टूडेंट ऑफ़ दा ईयर की ट्राफी और ग्यारह हजार का लिफाफा लेने स्टेज पर पहुंचा तो पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।

साभार
सुरेश बाबू मिश्रा

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