16 सितम्बर विश्व ओजोन दिवस पर विशेष खतरे में है धरती की छतरी ओजोन परत

सन् 1995 में 16 सितम्बर को पहला विश्व ओजोन दिवस मनाया गया। तब से यह सिलसिला लगातार जारी है। ओजोन परत मनाने का मुख्य उद्देश्य विश्व के लोगों को ओजोन परत के घटते आकार तथा उसके परिणामस्वरुप उत्पन्न होने वाले खतरों से जागरूक करना है। ओजोन परत का घटता आकार गंभीर चिंता का विषय है और इसके लिए विश्व के समस्त देशों को एकजुट होकर मुहिम चलाना जरूरी है।
पृथ्वी के चारों ओर हजारों किलोमीटर की ऊँचाई तक हवा फैली हुई है। इस हवा में अनेक प्रकार की गैसें मिली हुई हैं। पृथ्वी के चारों ओर फैली रंगहीन, गंधहीन गैसों एवं हवा के इस आवरण को ही वायुमण्डल कहते हैं। वायुमंडल के पांच मुख्य क्षेत्र हैं ये हैं-क्षोभ मण्डल, संताप मंडल, ओजोन मण्डल, अयन मण्डल तथा बर्हि मंडल, ओजोन मंडल को ही ओजोन परत कहते हैं।
ओजोन परत वायुमंडल की एक महत्वपूर्ण परत है। यह समुद्रतल से 32 किलोमीटर से 80 किलोमीटर की ऊंचाई तक फैली हुई है। इसमें ओजोन गैस की प्रधानता होती है। यह समताप मण्डल और बर्हिमंडल के बीच में स्थित होती है और इसका आकार कांच घर के समान होता है।
ओजोन परत सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों की ऊष्मा को सोख लेती है। एक आकलन के अनुसार सूर्य से निकलने वाली ऊष्मा का केवल 47 प्रतिशत भाग ही पृथ्वी तक पहुँचता है सूर्य की शेष ऊष्मा को ओजोन परत सोख लेती है। यदि ओजोन परत नहीं हो और सूर्य के किरणों की पूरी ऊष्मा पृथ्वी तक पहुँच जाये तो पूरी पृथ्वी कुछ ही दिनों में पिघलकर लावा बन जायेगी। इस प्रकार ओजोन परत पृथ्वी और मानव के सुरक्षा कवच का काम करती है। इसलिए इसे धरती की छतरी कहा जाता है। अगर ओजोन परत नहीं होती तो पृथ्वी भी अन्य ग्रहों की भांति प्राणी विहीन और वीरान होती।
अन्धाधुन्ध परमाणु परीक्षणों, उद्योगों से निकलने वाले रसायनों तथा फ्रिज एवं अग्नि शामकों से निकलने वाले फ्लोरो-क्लोरो कार्बन से ओजोन परत का आकार निरन्तर घट रहा है जो गंभीर चिंता का विषय है। यदि समय रहते इसे रोकने के लिए कारगर प्रयास नहीं किये गए तो पृथ्वी के अस्तित्व को ही खतरा उत्पन्न हो जायेगा।
विश्व मौसम संगठन की नवम्बर 2000 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन परत में छेद है। इस छिद्र का आकार ढाई वर्ग किलोमीटर से भी अधिक है। एक आकलन के अनुसार पृथ्वी का एक करोड़ किलोमीटर का क्षेत्र इसकी चपेट में आ गया है। यह स्थिति बहुत ही खतरनाक एवं चिन्ताजनक है।
सन् 1995 में ओजोन परत के आकार को नष्ट करने वाले रसायनों का प्रयोग कम करने के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय समझौता हुआ था, परन्तु निहित स्वार्थों तथा दुनिया में अपनी चौधराहट कायम करने की होड़ में दुनिया के देश इस समझौते का पालन नहीं कर रहे हैं। जिससे स्थिति दिनों दिन भयावह होती जा रही है।
मनुष्य की प्रकृति के साथ की जा रही लगातार छेड़छाड़ के परिणाम स्वरुप ओजोन परत का आकार निरन्तर घट रहा है। एक आकलन के अनुसार यदि यही प्रक्रिया जारी रही तो आगामी 40 वर्षों में ओजोन परत के आकार में 30 प्रतिशत की कमी हो जायेगी। इससे पृथ्वी पर मानवता के अस्तित्व ही संकट में पड़ जाएगा।
ओजोन परत के घटते आकार का पृथ्वी के प्राणियों पर बहुत विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। वर्तमान समय में बढ़ता त्वचा का कैंसर लोगों में बढ़ता मोतियाबिन्द, तेजाबी वर्षा, शरीर को झुलसा देने वाली गर्मी, ग्लेशियरों का पिघलना, अनावृष्टि और अतिवृष्टि असमय बाढ़ और असमय सूखा सब ओजोन परत के घटते आकार के ही दुष्परिणाम हैं। अगर समय रहते इसको रोकने के लिए कारगर प्रयास नहीं किये गये तो निकट भविष्य में पृथ्वी और मानव का अस्तित्व ही संकट में पड़ जायेगा।
पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त करके पृथ्वी पर हरियाली बढ़ाकर, एसी, फ्रिज और अग्निशामक यंत्रों का कम से कम प्रयोग करके हम ओजोन परत के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
दुनिया के सभी देश ओजोन परत के घटते आकार के खतरे को रोकने के लिए मिलकर कारगर कदम उठाएं। जिससे पृथ्वी और उसके प्राणियों का अस्तित्व बना रहे। आइये हम सब मिलकर आजोन दिवस के अवसर पर ‘ओजोन परत के संरक्षण’ का संकल्प लें।

साभार – सुरेश बाबू मिश्रा
वरिष्ठ साहित्यकार

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