कद – लघुकथा

कमलनाथ ऑफिस जाने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने अपना बैग उठाया और अपनी पत्नी विनीता के कमरे की ओर गए। अपने ममेरे भाई शैलेन्द्र और अपनी पत्नी की हंसी की आवाज को सुनकर उनके कदम ठिठक गए। तभी शैलेन्द्र की आवाज सुनाई पड़ी, “भाभी! भइया की यह हालत मुझसे देखी नहीं जाती। हमें उन्हें सारी बातें साफ-साफ बता देनी चाहिए।“
“मुझे सब कुछ अपने आप पता चला जाएगा, तुम्हें बताने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी बच्चू।“ कमलनाथ मन ही मन बुदबुदाए। उनके चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कराहट तैर गई।

“विनीता मेरा मोबाइल नहीं मिल रहा है। देखना कहीं तुम्हारे कमरे में तो नहीं हैं? यह कहते हुए कमलनाथ कमरे में पहुंच गए।
विनीता और शैलेन्द्र दोनों बैड पर बैठे हुए थे और आपस में हंस-हंस कर बातें कर रहे थे। विनीता ने मोबाइल ढूंढ़कर कमलनाथ को पकड़ा दिया।

कमलनाथ आफिस के लिए चल दिये। वे बड़े तनाव में थे। शैलेन्द्र उनका ममेरा भाई था। पिछले पांच-छः दिनों से वह उनके यहां ठहरा हुआ था। कमलनाथ की शादी के पाँच-छः वर्ष हो गए थे। शादी के बाद शैलेन्द्र पहली बार उनके घर आया था। शैलेन्द्र ने विनीता को शादी में ही देखा था मगर विगत पाँच-छः दिनों में दोनों इतने घुल-मिल गए थे कि मानो कि एक-दूसरे को वर्षों से जानते हैं। दोनों हर समय साथ-साथ रहते और एक पल के लिए भी एक-दूसरे से अलग नहीं होते। घन्टों बैड पर बैठकर बातें करते, हंसते, खिलखिलाते, टी.वी. पर साथ-साथ पिक्चर और सीरियल देखते। कमलनाथ के मन में दोनों की यह नजदीकी कांटे की तरह चुभती। दोनों के बीच देवर-भाभी का रिश्ता था। इसलिए वे किसी से कुछ कह भी नहीं सकते थे। दोनों के बीच क्या खिचड़ी पक रही है यह जानने के लिए आज उन्होंने अपना मोबाइल रिकार्डिंग पर लगाकर विनीता के बैड पर रख दिया था।

कमलनाथ मोबाइल में रिकार्ड दोनों के बीच हुई बातचीत सुनने के लिए बड़े बेताब थे। उन्होंने घड़ी पर नजर डाली अभी आफिस खुलने में बीस मिनट बाकी थे। एक जगह सड़क पर भीड़-भाड़ कम देखकर मोटरसाइकिल खड़ी की और मोबाइल ऑन कर रिकार्डिंग सुनने लगे। वे जैसे-जैसे मोबाइल में दर्ज बातें सुन रहे वैसे-वैसे उनके चेहरे का रंग बदलता जा रहा थे

विनीता की आवाज थी-“दाम्पत्य जीवन में शान्ति बनाए रखने के लिए पत्नी अपने सीने पर पत्थर की शिला रख लेती है मगर पति अपने सीने पर छोटा सा कंकड़ भी बर्दाश्त नहीं कर पाता है। शादी के बाद वह अपनी लेडीज सहकर्मियों के साथ अक्सर पिक्चर या सैर सपाटे को जाते थे। इन्होंने कभी नहीं सोचा कि ऐसे में मेरे दिल पर क्या गुजरती होगी। उन्हें यह अहसास कराने के लिए तुम्हारी मदद से हम दोनों के बीच नजदीकी दिखाने का नाटक किया तो जनाब कितने बेचैन हो उठे हैं। इन्हें ना अपने भाई पर विश्वास है और न अपनी पत्नी पर। इन्हें लग रहा है कि मेरे और तुम्हारे बीच कोई चक्कर चल रहा है।“
कमलनाथ को अपने ऊपर बड़ी ग्लानि हो रही थी। उन्हें अपनी तुलना में विनीता का कद बहुत बड़ा लग रहा था।

साभार – सुरेश बाबू मिश्रा
वरिष्ठ साहित्यकार

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