भाषा संस्कृति का स्पंदन भी होती है और संवाहक भी | भाषा भावों और विचारों की वाहक होती है जिसके माध्यम से मनुष्य परस्पर व्यवहार करने में सक्षम होते हैं। मानव द्वारा संचालित सृष्टि के सभी कार्यों में भाषा की भूमिका सर्वोत्तम मानी गई है और यह एक आधारभूत सच्चाई है कि जिस भी भाषा को मनुष्य अपने परिवेश से सहज रूप में अपना लेता है, वह कोई जन्मजात प्रवृत्ति नहीं होती और न ही उसके या उसके तत्कालीन जनसमुदाय द्वारा रची गई भाषा होती है, वह भाषा तो युगयुगांतरों से जन समूहों के सांस्कृतिक व सभ्याचारिक संदर्भों से निर्मित होती है और उस समाज के विकास के साथसाथ ही विकसित होती जाती है। यही कारण है कि जो समाज जितना अधिक विकसित होता है उस समाज की भाषा उतनी ही उन्नत होती है अथवा यह भी कहा जा सकता है कि किसी समाज के विकास की पहचान उसकी भाषा से की जा सकती है।
वस्तुतः संस्कृति भाषा के विकास का मूलाधार होती है और फिर यही भाषा संस्कृति का संरक्षण एवं संवर्धन करती है। इसलिए भाषा और संस्कृति का परस्पर गहरा संबंध माना जाता है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति बहुत प्राचीन एवं सनातन है और भारतीय संस्कृति के एकाधिक तत्वों को आत्मसात करने की प्रवृत्ति हिंदी में प्राचीन काल से ही लक्षित होने लगती है। इसी गुण के कारण हिंदी भारतीय संस्कृति के व्यापक तत्वों को समाहित करने वाली भाषा बन गई है। भाषा का भौतिक आधार ध्वनि होता है। हिंदी भाषा की ध्वनियों का प्राचीनतम रूप वैदिक ध्वनि समूह है, जिन्हें वर्ण या अक्षर कहते हैं। हिंदी भाषा का विकास संस्कृत से हुआ है और इसकी पुरातन विकासधारा वैदिक संस्कृत से लौकिक संस्कृत, लौकिक संस्कृत से पाली, पाली से प्राकृत, प्राकृत से अपभ्रंश और शौरसेनी अपभ्रंश से हिंदी भाषा के विकास की मानी जाती है।
भारतीय संस्कृति के संवर्धन और उन्नयन में हिंदी का योगदान हमेशा से रहा है। बहुत सरल, सहज और सुगम भाषा होने के साथ हिंदी विश्व की संभवतः सबसे वैज्ञानिक भाषा है जिसे दुनिया भर में समझने, बोलने और चाहने वाले लोग बहुत बड़ी संख्या में मौजूद हैं। यह विश्व में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है जो हमारे पारंपरिक ज्ञान, प्राचीन सभ्यता और आधुनिक प्रगति के बीच एक सेतु भी है। हिंदी विश्व के प्रायः सभी महत्वपूर्ण देशों के विश्व विद्यालयों में अध्ययन अध्यापन में भागीदार है। अकेले अमेरिका में ही लगभग एक सौ पचास से ज्यादा शैक्षणिक संस्थानों में हिंदी का पठनपाठन हो रहा है। आज जब शव सदी में वैश्वीकरण के दबावों के चलते विश्व की तमाम संस्कृतियाँ एवं भाषाएँ आदान प्रदान व संवाद की प्रक्रिया से गुजर रही है ऐसे में हिंदी इस दिशा में विश्व मनुष्यता को निकट लाने के लिए सेतु का कार्य कर रही है। उसके पास पहले से ही बहु सांस्कृतिक परिवेश में सक्रिय रहने का अनुभव है जिससे वह अपेक्षाकृत ज्यादा रचनात्मक भूमिका निभाने की स्थिति में है। हिंदी सिनेमा अपने संवादों एवं गीतों के कारण विश्व स्तर पर लोकप्रिय हुए हैं। उसने सदा सर्वदा से विश्वमन को जोड़ा है। हिंदी की मूल प्रकृति लोकतांत्रिक तथा रागात्मक संबंध निर्मित करने की रही है। यह विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की ही राष्ट्र भाषा नहीं है बल्कि पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, फिजी, मॉरीशस, गुयाना, त्रिनिदाद तथा सुरीनाम जैसे देशों की सम्पर्क भाषा भी है। वह भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों के बीच खाडी देशों, मध्य एशियाई देशी, रूस, समूचे यूरोप, कनाडा, अमेरिका तथा मैक्सिको जैसे प्रभावशाली देशों में रागात्मक जुड़ाव तथा विचारविनिमय का सवल माध्यम है।
हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी है, जो ध्वनि प्रधान हैं। इसे विश्व की सर्वाधिक वैज्ञानिक, सरल एवं सुबोध भाषा माना गया है क्योंकि इसमें सूक्ष्म-सी ध्वनि भेद होने पर नए ध्वनि-चिह्न का प्रावधान किया जाता है। भारत की संस्कृति में कुछ ऐसा है जो हमेशा से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। संस्कृति दूसरों से व्यवहार करने का, सौम्यता से चीज़ों पर प्रतिक्रिया करने का, मूल्यों के प्रति हमारी समझ का, न्याय, सिद्धांत और मान्यताओं को मानने का एक तरीका है। भारत की संस्कृति में सब कुछ है, जैसे विरासत के विचार, लोगों की जीवन-शैली, मान्यताएँ, रीति-रिवाज़, मूल्य, आदतें, परवरिश, विनम्रता, ज्ञान आदि। पुरानी पीढ़ी के लोग अपनी संस्कृति और मान्यताओं को आगे नई पीढ़ी को सौंपते हैं। भारतीय संस्कृति व सभ्यता विश्व की सर्वाधिक प्राचीन एवं समृद्ध संस्कृति व सभ्यता है। इसे विश्व की सभी संस्कृतियों की जननी माना जाता है। जीने की कला हो, विज्ञान हो या राजनीति का क्षेत्र भारतीय संस्कृति का सदैव विशेष स्थान रहा है। अन्य देशों की संस्कृतियों तो समय की धारा के साथ-साथ नष्ट होती रही है किंतु भारत की संस्कृति व सभ्यता आदिकाल से ही अपने परंपरागत अस्तित्व के साथ अजर-अमर बनी हुई है। यही कारण है की विश्व भर के लोग हमारी भारतीय संस्कृति को करीब से समझना और जानना चाहते हैं।
हिंदी विश्वव्यापी भाषा होने के साथ-साथ भारतीय संस्कृति की संवाहिका भी है। हम अपनी संस्कृति की व्याख्या अपनी भाषा में जितनी सरलता से कर सकते है उतनी सरलता से दूसरी भाषा में नहीं कर सकते। भाषा हृदय की अभिव्यक्ति के साथ ही संस्कृति और सभ्यता की वाहक भी है। इसी कारण हिंदी अपनी आंतरिक चुनौतियों से जूझते हुए आज राजभाषा ही नहीं, बल्कि विश्वभाषा बनने के निकट है। इसमें अन्य भाषाओं को आत्मसात करने की क्षमता है जो की हिंदी की सबसे बड़ी पहचान है। वैश्विक स्तर पर भी भारतीयता की पहचान के रूप में हिंदी बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आ रही है। भारतीय संस्कृति आज भी अपने मूल अस्तित्व में हिंदी के द्वारा ही विश्व भर में लोकप्रिय है। दूर देश से निकलने वाली हिंदी पत्रिकाओं ने भी हिंदी को वैश्विक फ़लक पर ले जाने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है।
आज हिंदी जो वैश्विक आकार ग्रहण कर रही है, उसमें रोजी-रोटी की तलाश में अपना वतन छोड़ कर गए गिरमिटिया मजूदरों के योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता। गिरमिटिया मजदूर अपने साथ अपनी भाषा और संस्कृति भी लेकर गए, जो आज हिंदी को वैश्विक स्तर पर फैला रहे हैं। मसलन, एशिया के अधिकतर देशों चीन, श्रीलंका, कंबोडिया, लाओस, थाइलैंड, मलेशिया, जावा आदि में रामलीला के माध्यम से राम के चरित्र पर आधारित कथाओं का मंचन किया जाता है। वहां के स्कूली पाठ्यक्रम में रामलीला को शामिल किया गया है। हिंदी की रामकथाएं भारतीय सभ्यता और संस्कृति का संवाहक बन चुकी हैं। रेडियो सीलोन और श्रीलंकाई सिनेमाघरों में चल रही हिंदी फिल्मों के माध्यम से हिंदी की उपस्थिति समझी जा सकती है। आज हिंदी साहित्य की विविध विधाओं में जितने रचनाकार सृजन कर रहे हैं उतने बहुत सारी भाषाओं के बोलने वाले भी नहीं हैं। केवल संयुक्त राज्य अमेरिका में ही दो सौ से अधिक हिंदी साहित्यकार सक्रिय हैं जिनकी पुस्तकें छप चुकी हैं। यदि अमेरिका से “विश्वा”, हिंदी जगत तथा श्रेष्ठतम वैज्ञानिक पत्रिका “विज्ञान प्रकाश’ हिंदी की दीपशिखा को जलाए हुए हैं तो मॉरीशस से विश्व हिंदी समाचार, सौरभ, वसंत जैसी पत्रिकाएँ हिंदी के सार्वभौमिक विस्तार को प्रामाणिकता प्रदान कर रही हैं। संयुक्त अरब अमीरात से वेब पर प्रकाशित होने वाले हिंदी पत्रिकाएँ ‘अभिव्यक्ति’ और ‘अनुभूति’ पिछले ग्यारह से भी अधिक वर्षों से लोकमानस को तृप्त कर रही हैं और दिन पर दिन इनके पाठकों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। आज हिंदी ई-सहचर, जनकृति, हस्ताक्षर जैसी सैकड़ों ईपत्रिकाएं अपनी वैश्विक उपलब्धता का उद्घोष कर रही है। अब हिंदी के अधिकांश समाचार पत्र भी गूगल पर ईपेपर के रूप में उपस्थित है।
आज के वैश्विक फलक पर हिंदी स्वयं को एक संपर्क भाषा, प्रचार भाषा और राजभाषा के साथसाथ वैश्विक भाषा के रूप में स्वयं को स्थापित करती जा रही है। हिंदी अपनी सरलता और सुगमता के कारण हमेशा से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती रही है और इसलिए आज पूरे विश्व में भारत की संस्कृति को जानने और जानने की इच्छा लोगों में है। अत: भारतीय संस्कृति की वैश्विक स्तर पर जोत जगाये रखने वाली हिंदी संवाहिका के रूप मे अपना योगदान देते आ रही है।
अतः यह कहा जा सकता है कि हिंदी विश्व बंधुत्व, सहयोग, परस्पर स्नेह व आदर, परोपकार, दया, क्षमा आदि अद्वितीय गुणों का प्रचारप्रसार करके समस्त विश्व को भारतीय संस्कृति के मूल भावों से परिचित करवाते हुए भारतीयता का परचम लहरा रही है|
साभार – डॉ मीता गुप्ता
शिक्षाविद/ साहित्यकार