छोटा बेटा – कहानी

रिटायर्ड सेक्शन आफीसर जगमोहन अपने बैड पर लेटे हुए थे। उन्हें रिटायर हुए दो साल हो चुके थे। उनके चेहरे पर चिन्ता की अनगिनत लकीरें साफ दिखाई दे रही थीं।
जगमोहन जी की गिनती बड़े ईमानदार और ड्यूटी के पाबन्द अधिकारियो में होती थी। पूरी सर्विस के दौरान उन्होनंे कभी रिश्वत के पैसे को हाथ तक नहीं लगाया। यही कारण था कि वे अभी भी किराए के मकान में ही रहते थे।
उनके चार सन्तानें थीं। दो बेटे और दो बेटियां। उनका बड़ा बेटा कनाडा में जाॅब करता था। वह अपनी बीबी-बच्चों के साथ वहीं बस गया था। बड़ी बेटी की वे शादी कर चुके थे मगर अभी एक बेटी और छोटे बेटे की शादी करना बाकी थी।
छोटी बेटी और छोटे बेटे दोनों ने एम.बी.ए. किया था और दोनों पिछले एक साल से जाॅब की तलाश में थे।
रिटायरमेन्ट पर मिलने वाली ग्रेच्युटी और जी.पी.एफ. की धनराशि से जगमोहन जी ने महानगर मंे प्लाट तो खरीद लिया था मगर अब उस पर मकान बनवाने के लिए रुपए कहां से आए यही चिन्ता उन्हें खाए जा रहा रही थी। छोटी बेटी की शादी और छोटै बेटे का सैटिलमेन्ट अभी तक नहीं हो पाने से भी वे आजकल बड़े परेशान रहते थे।
जगमोहन जी को अपने बड़े बेटे पर बड़ा नाज था। वह बचपन से ही बड़ा ब्रिलिएन्ट था। हाईस्कूल और इंटर में उसने पूरे जिले में टाॅप किया था। जब उसका रिजल्ट आता तो जगमोहन जी का सीना गर्व से चैड़ा हो जाता। उन्होंने बड़े बेटे की पढ़ाई-लिखाई पर जी खोल कर पैसा खर्च किया और उसे कभी किसी चीज की कमी महसूस नहीं होने दी। उन्होंने उसे आई.आई.टी. कराई।
इसके विपरीत उनका छोटा बेटा पढ़ाई में मध्यम दर्जे का था। इसलिए जगमोहन जी बचपन से ही उससे असन्तुष्ट रहते थे। छोटा बेटा बड़ा शान्त स्वभाव का था और अपने पापा का बड़ा ध्यान रखता था। घर के और अपने पापा के अधिकांश काम वही निपटाता था। अभी तक उसे जाॅब नहीं मिल पाई थी इसलिए जगमोहन जी उससे और चिढ़ने लगे थे। उसे ताना देने का वह कोई मौका नहीं चूकते।
जगमोहन जी ने सामने दीवार पर लगी घड़ी पर नजर डाली। रात के साढ़े नौ बज चुके थे। उन्हें बड़े बेटे के फोन का इंतजार था। कल उन्होंने बड़े बेटे से बीस लाख रुपए भेजने के लिए कहा था जिससे वे अपना मकान बनवा सके। बड़े बेटे का पैकेज तीस लाख रुपए ईयरली था और उसे वहां जाॅब करते लगभग दस साल हो गए थे, इसलिए उन्हें पूरी उम्मीद थी कि बेटे को रुपए भेजने में कोई परेशानी नहीं होगी।
तभी उनके मोबाइल की घन्टी बजने लगी। बड़े बेटे का नम्बर मोबाइल की स्क्रीन पर देखकर उनकी आँखें खुशी से चमक उठीं। कुछ औपचारिक बातें करने के बाद बड़े बेटे ने मोबाइल पर कहा-“साॅरी पापा जी मैं इस समय आपको बीस लाख रुपए नहीं भेज पाऊंगा।“ यहाँ इस समय जाॅब की बड़ी क्राइसिस चल रही है पता नहीं कब कम्पनी बाहर का रास्ता दिखा दे।“
यह सुनकर जगमोहन जी सन्न रह गए थे। उन्हें सपने में भी बड़े बेटे से इस उत्तर की उम्मीद नहीं थी। उनके चेहरे पर चिन्ता की लकीरें और गहरी हो गईं थीं। तभी छोटा बेटा उनके कमरे में आया। अपने पापा को परेशान देखकर वह बोला-“पापा जी आज मुझे एक मल्टीनेशनल कम्पनी में जाॅब मिल गयी है। चार लाख रुपए का पैकेज है। आज से सारे खर्चे की जिम्मेदारी मेरी।“
जगमोहन जी को पता नहीं क्या हुआ वे बिजली जैसी फुर्ती से उठे, उन्होंने अपने छोटे बेटे को कसकर गले लगा लिया और फफक-फफक कर रो पड़े। छोटे बेटा अपने पापा को इस तरह रोता देख भौंचक्का खड़ा था।

साभार – सुरेश बाबू मिश्रा
साहित्यकार

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