बरेली। जरी जरदोजी व बांस-बेत को भौगोलिक संकेतक (जीआई टैग) मिल गया है। जीआई टैग मिलने से शहर में रहने वाला कोई भी कारोबारी बरेली के नाम से ही जरी जरदोजी और बांस-बेत से बनीं वस्तुएं बेच सकेगा। इससे न केवल नाथ नगरी का कारोबार रफ्तार पकड़ेगा बल्कि शहर के छोटे कारोबारियों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलेगी। उत्तर प्रदेश सरकार की एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) के तहत बरेली की जरदोजी, बांस-बेत पंजीकृत है। जिला उद्योग विभाग के मुताबिक बरेली जरदोजी क्राफ्ट के लिए फरीदपुर में एनआरआइ वेलफेयर सोसायटी व बरेली के बांस बेत फर्नीचर के लिए सीबीगंज तिलियापुर के माडर्न ग्रामोद्योग सेवा संस्थान ने जुलाई 2022 को आवेदन किया था, जो अब पंजीकृत हो गए हैं। जरदोजी उत्पाद निर्माण से चार लाख से अधिक लोग जुड़े हैं। बांस-बेत के फर्नीचर कारोबार भी अधिक संख्या में हैं। कारोबारी आरिफ ने बताया कि है जरी जरदोजी के कच्चे माल जैसे रेशम, करदाना मोती, कोरा कसाब, मछली के तार, नक्शी, नग, मोती, ट्यूब, चनाला, जरकन नोरी, पत्तियां, दर्पण, सोने की चेन आदि की कीमतों में लगातार वृद्धि हुई है। वहीं, तैयार माल की कीमतें बढ़ नहीं रही हैं। ऐसा ही हाल बेंत के फर्नीचर का भी है। हस्तनिर्मित होने से यह उत्पाद अब जन सुलभ की श्रेणी से बाहर होता जा रहा हैं। जीआई टैग के उपयोग से एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र की विशेष विशेषता वाले सामान को पहचान मिलती है। जीआई टैग का रजिस्ट्रेशन सिर्फ 10 वर्ष की अवधि के लिए ही वैध रहता है। इसे समय-समय पर 10-10 वर्ष की अवधि के लिए नवीनीकृत किया जा सकता है। एक बार जीआइ टैग का दर्जा प्रदान कर दिए जाने के बाद कोई अन्य निर्माता समान उत्पादों के विपणन के लिए इसके नाम का दुरुपयोग नहीं कर सकता है। जीआइ टैग से उत्पाद की ब्रांडिंग, मार्केटिंग, निर्यात समेत कानूनी संरक्षण मिलता है।
– टीम न्यूज़ अपडेट यूपी