भारत, जो विश्व की सबसे बड़ी जनसंख्या वाले देशों में से एक है, 2024 के ओलंपिक खेलों में एक भी स्वर्ण पदक नहीं जीत सका है। यह स्थिति हमारे खेल प्रशासन, संरचना और संस्कृति की कई गंभीर चिंताओं को प्रकट करती है। इस लेख में, हम इन विविध कारणों का विश्लेषण करेंगे जो देश की ओलंपिक सफलता में बाधा बन रहे हैं, जैसे कि अविकसित खेल संरचना, असंगत सरकारी सहायता और योग्य प्रशिक्षण की कमी। समस्याओं को गहराई से समझना और उनके समाधान पर सार्थक विचार एवं संवाद करना आज के समय में अत्यंत आवश्यक हो गया है।
खेल इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी : एक गंभीर समस्या-
भारत में खेलों का इतिहास शताब्दियों पुराना है, लेकिन आधुनिक समय में, खेलों को संगठित रूप में विकसित करने के लिए ठोस इन्फ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता है। देश के अधिकांश हिस्सों में खेल इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी एक प्रमुख समस्या बनी हुई है, जिसने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय एथलीटों के प्रदर्शन को प्रभावित किया है।
1. सीमित विकास:
भारत में खेल सुविधाओं का विकास सीमित है। देश के कुछ बड़े शहरों में विश्व स्तरीय स्टेडियम और प्रशिक्षण केंद्र हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में ऐसी सुविधाओं का गंभीर अभाव है। इन क्षेत्रों में न तो खेल के मैदान सही ढंग से विकसित होते हैं और न ही वहां आधुनिक उपकरण उपलब्ध होते हैं। इससे इन इलाकों के प्रतिभावान खिलाड़ी अपनी क्षमताओं का पूरा उपयोग नहीं कर पाते और राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा में पीछे रह जाते हैं।
2. सरकारी निवेश की कमी:
हालांकि सरकार समय-समय पर खेलों के विकास हेतु योजनाएं बनाती है, लेकिन उनके कार्यान्वयन में कमी दिखती है। खेल बजट का एक बड़ा हिस्सा मुख्यतः क्रिकेट जैसे खेलों पर खर्च होता है, जबकि अन्य खेलों के लिए पर्याप्त धन नहीं मिलता। इसके कारण विभिन्न खेलों के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे का निर्माण नहीं हो पाता, जिससे खेल प्रतिभाओं को प्रोत्साहन नहीं मिल पाता। सरकार की प्राथमिकता में खेलों का स्थान बढ़ाना आवश्यक है ताकि विभिन्न खेलों के लिए उच्च स्तरीय इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण किया जा सके।
3. निजी क्षेत्र का योगदान:
विकसित देशों में खेल इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास में निजी क्षेत्र की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। लेकिन भारत में निजी क्षेत्र का योगदान अब भी सीमित है। कुछ कंपनियां और उद्योगपतियों ने खेलों के विकास में रुचि दिखाई है, लेकिन उनका प्रभाव अभी भी व्यापक नहीं हो पाया है। यदि निजी क्षेत्र और कॉर्पोरेट्स सक्रिय रूप से खेल इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश करें, तो इस दिशा में काफी सुधार हो सकता है।
4. प्रशिक्षकों और उपकरणों की कमी:
खेल इन्फ्रास्ट्रक्चर में केवल खेल के मैदान या स्टेडियम ही नहीं आते, बल्कि प्रशिक्षकों, शारीरिक फिटनेस उपकरण, और मेडिकल सुविधाओं की भी आवश्यकता होती है। भारत में खेल प्रशिक्षकों और उपकरणों की कमी एक अन्य बड़ी समस्या है। योग्य प्रशिक्षकों के अभाव में, खिलाड़ी अपने खेल को सुधारने में असमर्थ रहते हैं। इसी प्रकार, आधुनिक उपकरणों की कमी से प्रशिक्षण का स्तर भी प्रभावित होता है।
5. खेल संस्कृति और इन्फ्रास्ट्रक्चर का पारस्परिक संबंध:
एक मजबूत खेल संस्कृति के विकास के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर का होना अनिवार्य है। जब बच्चों और युवाओं को खेलों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा और उन्हें सही इन्फ्रास्ट्रक्चर मिलेगा, तभी वे खेलों के प्रति रुचि दिखाएंगे। वर्तमान स्थिति में, माता-पिता और समाज का ध्यान अधिकतर शिक्षा पर केंद्रित है, क्योंकि खेलों में करियर बनाने के अवसर सीमित माने जाते हैं। यदि इन्फ्रास्ट्रक्चर बेहतर होगा, तो खेलों को भी शिक्षा के समान महत्व दिया जाएगा।
अभिभावक और शिक्षकों का खेल के प्रति उदासीनता और बच्चों-
भारत में खेल को लेकर अभिभावकों और शिक्षकों की मानसिकता में एक गहरी जड़ता है, जो अक्सर बच्चों के खेल में हिस्सा लेने और इसे एक करियर के रूप में अपनाने की राह में बाधा बनती है। खेल के प्रति उनका अल्पज्ञान, बच्चों के भविष्य को लेकर चिंता, अपनी महत्वाकांक्षाएँ, पूर्वाग्रह, और व्यक्तिगत अनुभव सभी मिलकर एक ऐसा वातावरण बनाते हैं, जिसमें खेल को केवल एक समय-व्यर्थ गतिविधि माना जाता है।
1. खेल के प्रति अल्पज्ञान:
अभिभावकों और शिक्षकों के बीच खेल के महत्व और उसकी संभावनाओं के प्रति जागरूकता की कमी एक प्रमुख समस्या है। खेल को केवल एक शारीरिक गतिविधि के रूप में देखा जाता है, न कि एक संभावित करियर विकल्प के रूप में। अधिकांश अभिभावक और शिक्षक यह नहीं समझते कि खेल बच्चों के सर्वांगीण विकास में कितना महत्वपूर्ण योगदान कर सकते हैं। वे इसे केवल एक शौक या स्कूल की पढ़ाई के बीच आने वाली बाधा के रूप में देखते हैं, जिसके चलते वे बच्चों को खेल में रुचि लेने से हतोत्साहित करते हैं।
2. बच्चों के भविष्य को लेकर चिंता:
अभिभावक हमेशा अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित रहते हैं। वे चाहते हैं कि उनके बच्चे सुरक्षित और स्थिर करियर का चयन करें। खेल के क्षेत्र में सफलता की अनिश्चितता और स्थिर आय के अभाव की धारणा के कारण, वे इसे एक जोखिमपूर्ण विकल्प मानते हैं। उन्हें डर होता है कि यदि उनका बच्चा खेल में करियर बनाना चाहता है और असफल हो जाता है, तो उसके पास लौटने के लिए कोई सुरक्षित विकल्प नहीं होगा। यही कारण है कि वे बच्चों को खेल की बजाय पारंपरिक करियर जैसे डॉक्टर, इंजीनियर, या वकील बनने की सलाह देते हैं।
3. अपनी महत्वाकांक्षाएँ:
कई बार अभिभावक अपनी महत्वाकांक्षाएँ बच्चों पर थोपते हैं। वे चाहते हैं कि उनके बच्चे उन सपनों को पूरा करें जिन्हें वे स्वयं पूरा नहीं कर पाए। यदि किसी अभिभावक का सपना था कि उनका बच्चा डॉक्टर या इंजीनियर बने, तो वे उसे खेल की ओर जाने से रोकते हैं। उनकी अपनी असफलताओं और आकांक्षाओं का असर बच्चों की संभावनाओं पर पड़ता है, जो कि बच्चों के लिए सही रास्ते का चुनाव करने में बाधक बनता है।
4. पूर्वाग्रह और अनुभव:
अभिभावकों और शिक्षकों के पूर्वाग्रह और व्यक्तिगत अनुभव भी बच्चों के खेल में हिस्सेदारी को प्रभावित करते हैं। यदि किसी अभिभावक का खेल के प्रति नकारात्मक अनुभव रहा है, तो वे अपने बच्चों को भी खेल से दूर रखने की कोशिश करते हैं। उदाहरण के लिए, यदि किसी अभिभावक को लगता है कि खेल में करियर बनाने से आर्थिक स्थिरता नहीं मिलती है, तो वे बच्चों को खेलों में भाग लेने से रोक सकते हैं। इसी तरह, शिक्षकों के भी अपने पूर्वाग्रह होते हैं, जो उनके छात्रों के प्रति उनके दृष्टिकोण को प्रभावित करते हैं।
5. खेल और शिक्षा के बीच संतुलन:
अभिभावक और शिक्षक अक्सर खेल और शिक्षा के बीच संतुलन नहीं बना पाते। वे मानते हैं कि अगर बच्चे खेलों में ज्यादा समय देंगे, तो उनकी शिक्षा प्रभावित होगी। हालांकि, यह समझना जरूरी है कि खेल न केवल शारीरिक फिटनेस बढ़ाते हैं, बल्कि मानसिक विकास, टीम वर्क, और नेतृत्व क्षमता जैसे गुण भी विकसित करते हैं। इन गुणों का सकारात्मक असर बच्चों की शैक्षिक प्रदर्शन पर भी पड़ता है।
खेलों में सरकारी निवेश की कमी, राजनैतिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार: भारतीय खेलों की सबसे बड़ी चुनौतियाँ-
भारतीय खेल जगत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने के लिए कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इनमें से प्रमुख चुनौतियाँ हैं सरकारी निवेश की कमी और खेल क्षेत्र में व्याप्त राजनैतिक एवं प्रशासनिक भ्रष्टाचार। ये समस्याएँ न केवल देश की खेल प्रतिभाओं को सीमित करती हैं बल्कि खेलों के समग्र विकास में भी बड़ी रुकावट डालती हैं।
1. सरकारी निवेश की कमी:
भारतीय खेलों में सरकारी निवेश की कमी एक गंभीर समस्या है। क्रिकेट को छोड़कर अन्य खेलों को पर्याप्त वित्तीय सहायता नहीं मिल पाती, जिससे इन खेलों में प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की संख्या कम होती जा रही है। सरकार द्वारा खेलों के लिए निर्धारित बजट का एक बड़ा हिस्सा क्रिकेट और कुछ अन्य प्रमुख खेलों पर खर्च होता है, जबकि बाकी खेलों के लिए बहुत ही सीमित संसाधन उपलब्ध होते हैं।
इस कमी का परिणाम यह होता है कि खिलाड़ियों को जरूरी सुविधाएं नहीं मिल पातीं। प्रशिक्षण के लिए जरूरी उपकरण, कोचिंग, चिकित्सा सुविधाएँ, और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने के अवसरों की कमी के कारण, खिलाड़ी अपनी पूरी क्षमता का प्रदर्शन करने में असमर्थ रहते हैं। इसके अलावा, छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में खेल सुविधाओं की उपलब्धता न के बराबर होती है, जिससे उन इलाकों के प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को अपने सपने साकार करने का अवसर ही नहीं मिल पाता।
2. राजनैतिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार:
भारतीय खेलों में राजनैतिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार भी एक बड़ी समस्या है। खेल संगठनों और फेडरेशनों में व्यक्तिगत हितों की प्रधानता खेलों के विकास में बाधा बनती है। खेल संगठनों में पारदर्शिता का अभाव है और निर्णय लेने की प्रक्रिया में अक्सर योग्यता के बजाय व्यक्तिगत संबंधों और राजनीति का महत्व अधिक होता है।
खेल संगठनों में भ्रष्टाचार का परिणाम यह होता है कि खिलाड़ियों का चयन, प्रशिक्षण, और अन्य महत्वपूर्ण निर्णयों में पारदर्शिता नहीं रहती। योग्यता के आधार पर चयन न होने के कारण प्रतिभाशाली खिलाड़ी पीछे रह जाते हैं, और अन्य कम योग्य खिलाड़ियों को मौका मिल जाता है। इसके अलावा, खेल संगठनों में वित्तीय अनियमितताओं के कारण खिलाड़ियों के विकास के लिए आवंटित धन का उचित उपयोग नहीं हो पाता। यह धन भ्रष्ट अधिकारियों की जेब में चला जाता है, जिससे खेल सुविधाओं और संसाधनों की कमी और भी बढ़ जाती है।
3. खेलों के विकास में बाधाएँ:
सरकारी निवेश की कमी और भ्रष्टाचार के कारण भारतीय खेलों का समग्र विकास अवरुद्ध होता है। कई बार खिलाड़ियों को फंड से वंचित रखा जाता है, और उन्हें अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए खुद पैसे खर्च करने पड़ते हैं। इस कारण से कई प्रतिभाशाली खिलाड़ी अपनी क्षमता का पूरा उपयोग नहीं कर पाते और समय से पहले ही खेलों को छोड़ देते हैं। इसके अतिरिक्त, भ्रष्टाचार के कारण खेल संगठनों में निर्णय लेने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। नीतियों का कार्यान्वयन समय पर नहीं हो पाता, और योजनाओं के लाभ खिलाड़ी तक पहुंचने में देर हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप, देश का खेल जगत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पिछड़ जाता है, और भारत खेलों में उस मुकाम तक नहीं पहुंच पाता, जिसकी वह क्षमता रखता है।
भारत में व्यापक गरीबी: ओलंपिक असफलता का एक प्रमुख कारण-
इस असफलता के पीछे कई कारण हैं, लेकिन इनमें से एक प्रमुख कारण है देश में व्यापक गरीबी। गरीबी न केवल सामाजिक और आर्थिक विकास में बाधक है, बल्कि यह खेलों के क्षेत्र में भी बड़ी बाधा के रूप में उभरती है।
1. पौष्टिक आहार की कमी:
गरीबी के कारण लोगों के पास पर्याप्त और पौष्टिक आहार तक पहुंच नहीं होती। खेलों में सफल होने के लिए शारीरिक फिटनेस और अच्छे स्वास्थ्य का होना अत्यावश्यक है। लेकिन गरीब परिवारों के बच्चे अक्सर कुपोषण का शिकार होते हैं, जिससे उनकी शारीरिक और विकास में कमी आती है। पर्याप्त पोषण की कमी के कारण वे खेलों में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाते, और उन्हें बार-बार बीमारियों का सामना करना पड़ता है। यह स्थिति उन्हें खेलों में हिस्सा लेने से रोकती है और उनकी खेल क्षमता को सीमित कर देती है।
2. शिक्षा और खेल के बीच संतुलन:
गरीबी के कारण गरीब परिवारों के बच्चों को अपनी पढ़ाई और खेल के बीच संतुलन बनाने में कठिनाई होती है। गरीब परिवारों के बच्चे अक्सर अपनी पढ़ाई के साथ-साथ अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए काम करने को मजबूर होते हैं। इस कारण से, उनके पास खेलों के लिए समय और ऊर्जा नहीं बचती। उनके माता-पिता भी आर्थिक दबाव के चलते बच्चों को खेलों में हिस्सा लेने से हतोत्साहित करते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होगी और उनके भविष्य की संभावनाएँ कम हो जाएँगी।
3. खेल को करियर के रूप में अपनाने की चुनौती:
गरीब परिवारों के लिए खेल को एक करियर के रूप में अपनाना एक जोखिम भरा निर्णय हो सकता है। खेल में करियर बनाने के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधनों का अभाव होने के कारण, ये परिवार अपने बच्चों को इस दिशा में प्रोत्साहित नहीं करते। इसके अलावा, खेल में करियर के प्रति अनिश्चितता भी एक बड़ी बाधा है। गरीब परिवारों के लिए, एक स्थिर आय स्रोत का होना अधिक महत्वपूर्ण होता है, और इसलिए वे अपने बच्चों को खेल की बजाय पारंपरिक नौकरियों की ओर धकेलते हैं।
4. सरकारी सहायता और भ्रष्टाचार:
हालांकि सरकार खेलों के विकास के लिए कई योजनाएँ बनाती है, लेकिन गरीबी से जूझ रहे परिवारों तक इन योजनाओं का लाभ पहुंचाना एक चुनौती बनी हुई है। कई बार सरकारी योजनाएँ भ्रष्टाचार और अव्यवस्था के कारण अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँच पातीं। खेल सुविधाओं और प्रशिक्षण केंद्रों का निर्माण प्राथमिकता नहीं होता, और गरीब परिवारों के बच्चों के लिए अवसर सीमित रह जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप, गरीब वर्ग के खिलाड़ी ओलंपिक जैसे बड़े मंचों पर देश का प्रतिनिधित्व करने में असफल रहते हैं।
निष्कर्ष-
भारत, विश्व की सबसे बड़ी और विविधतापूर्ण जनसंख्या वाले देशों में से एक है, फिर भी उक्त खेलों में स्वर्ण पदक की अनुपस्थिति एक बड़ी चिंता एवं दुख का विषय है। जब हम देखते हैं कि दुनिया की प्रमुख शक्तियाँ कैसे अपने खिलाड़ियों को मंच पर खड़ा करती हैं और सफलता की ऊंचाइयों को छूती हैं, तो भारत की असफलता की कहानी एक निराशाजनक पीड़ादायक परिदृश्य पेश करती है। यह असफलता केवल खेलों की नहीं, बल्कि एक समग्र सामाजिक और सांस्कृतिक चुनौती की भी द्योतक है, जिसका समाधान राष्ट्र को गंभीरता से सोचना होगा। क्योंकि यह हम सब की सामुहिक असफलता है। भारतीय खेलों की प्रणाली में बुनियादी ढांचे की कमी एक महत्वपूर्ण बाधा है। खेल परिसर, प्रशिक्षण केंद्र और विश्वस्तरीय सुविधाओं की अनुपस्थिति ने खिलाड़ियों को अपनी प्रतिभा का पूरा उपयोग करने से रोक दिया है। आज भी, लाखों युवा जिनमें अपार संभावनाएँ हैं, उन सुविधाओं की कमी के कारण अपने सपनों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी केवल भौतिक नहीं है, बल्कि इसमें कोचिंग की गुणवत्ता, तकनीकी सहायता और उचित मार्गदर्शन की भी कमी शामिल है। इस कमी ने खेल क्षेत्र में एक ऐसा माहौल तैयार किया है जो युवा प्रतिभाओं को पूर्ण रूप से विकसित करने में असमर्थ है।
अभिभावकों की उदासीनता भी इस समस्या की जड़ में है। भारतीय समाज में अकादमिक शिक्षा को प्राथमिकता दी जाती है, जबकि खेलों को समय की बर्बादी के रूप में देखा जाता है। अभिभावक अपने बच्चों को खेलों में करियर बनाने के बजाय, उन्हें पारंपरिक पेशेवर मार्गों की ओर प्रवृत्त करते हैं। यह मानसिकता युवा खिलाड़ियों के लिए न केवल प्रेरणा की कमी का कारण बनती है, बल्कि उनके खेल के प्रति समर्पण और उत्साह को भी समाप्त करती है। जब समाज के एक बड़े हिस्से की सोच खेलों को लेकर नकारात्मक होती है, तो खिलाड़ी स्वयं को प्रेरित और समर्थित महसूस नहीं कर पाते। राजनीतिक भ्रष्टाचार और व्यापक गरीबी भी इस संकट को और बढ़ाते हैं। खेलों में आवश्यक निवेश और प्रोत्साहन की कमी का सीधा संबंध देश की राजनीतिक स्थिति से है। जब खेल संघों और संस्थाओं में भ्रष्टाचार व्याप्त होता है, तो फंड और संसाधन उचित तरीके से वितरित नहीं होते। यह स्थिति खिलाड़ियों की प्रगति को बाधित करती है और खेलों के विकास में रुकावट डालती है। इसके साथ ही, व्यापक गरीबी और सामाजिक असमानता ने भी खेलों को एक प्राथमिकता से हटा दिया है। आर्थिक संकट और असमान अवसर खेल प्रतिभाओं को उनके सपनों को साकार करने में सबसे बड़ी बाधा बन गए हैं।
इन सभी समस्याओं के बावजूद, यह भी सत्य है कि भारत में संभावनाओं की कमी नहीं है। भारतीय खिलाड़ियों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई बार अपना सामर्थ्य प्रस्तुत किया है, लेकिन यह सफलता अस्थायी रही है। जब तक देश खेलों के प्रति अपनी सोच और दृष्टिकोण में बदलाव नहीं लाएगा, तब तक यह असफलता केवल एक चक्रव्यूह बनकर रह जाएगी। इस परिवर्तन की आवश्यकता है कि खेलों को न केवल एक विकल्प के रूप में, बल्कि एक सम्मानजनक और प्रेरणादायक करियर के रूप में देखा जाए। देश की भविष्यवाणी इस बात पर निर्भर करती है कि हम कितनी गंभीरता से इन समस्याओं का समाधान निकालते हैं। जब तक हम खेलों के प्रति एक स्थिर, समर्पित और संसाधन संपन्न प्रणाली नहीं स्थापित करते, तब तक भारत को खेलों में वैश्विक मान्यता प्राप्त करने में कठिनाइयाँ आती रहेंगी। यह समय है, अब भारत के नेतृत्व, समाज और खेल प्रशासकों को मिलकर एक नई खेल संस्कृति की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए, जिससे भविष्य में भारतीय खिलाड़ी विश्व मंच पर स्वर्णिम प्रदर्शन कर भारतीय कीर्तिमान स्थापित कर सकें।
साभार
कुंवर लक्ष्य प्रताप भाटी
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खिलाड़ियों की समस्याओं एवं उनके निदान पर सकारात्मक चिंतन एवं निदान हेतु लेखक श्रीमान लक्ष्य प्रताप भाटी जी का सादर वन्दन एवं अभिनंदन …खेल जगत के समस्त खिलाड़ी उनके सकारात्मक चिंतन एवं खिलाड़ियों के प्रति उनकी श्रद्धा के लिए सदैव ऋणी रहेंगे