ऑक्सीजन व शीतलता का अक्षय स्रोत है पीपल

विगत वर्ष कोरोना की दूसरी लहर के दौरान वह भयावह दौर भी आया जब देश में आक्सीजन सिलेण्डरों की भारी कमी हो गई। सैकड़ों कोरोना मरीजों की श्वासें आक्सीजन के अभाव में थम गईं। केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकारों ने आक्सीजन की कमी को दूर करने के लिए आनन-फानन में नए आक्सीजन प्लांटों को लगाने की मंजूरी दी और नए आक्सीजन प्लांटों को लगाने का काम शुरू किया गया। आक्सीजन का यह अभाव मानव द्वारा प्रकृति के साथ लगातार छेड़-छाड़ का दुष्परिणाम है। विकास की अन्धी दौड़ में मानव प्रकृतिदत्त उन पेड़ों की अन्धाधुन्ध कटाई कर रहा है जो आक्सीजन का अक्षय स्रोत माने जाते हैं। आदिकाल से ही हमारी संस्कृति में पीपल के वृक्ष का बहुत महत्वपूर्ण स्थान रहा है। हमारे पूर्वज पीपल के वृक्ष को जीवनदायी वृक्ष मानकर इसकी पूजा करते थे। महात्मा बुद्ध ने पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर ही साधना की थी और इसी के नीचे उन्हें ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त हुआ था इसलिए पीपल के वृक्ष को बोधि वृक्ष भी कहा जाता है। बौद्ध धर्म के अनुयायी इस वृक्ष को बहुत पवित्र मानते हैं। गाँवों के लोगों की धारणा है कि पीपल के वृक्ष में ब्रह्मदेव का वास होता है। हाथी इसके पत्तों को बड़े चाव से खाता है इसलिए इसे गज भक्ष्य कहकर भी पुकारते हैं। पीपल का वृक्ष आक्सीजन विपुल भण्डार है इसलिए इसे नेचुरल आक्सीजन प्लांट भी कहा जाता है। पीपल का वृक्ष रात्रि में भी ऑक्सीजन निर्गत करता है।

एक अनुमान के अनुसार पीपल का वृक्ष 24 घण्टे में 22 घण्टे तक ऑक्सीजन निर्गत करता है। पीपल का पुराना वृक्ष नए लगाए गए अन्य 25 वृक्षों के बराबर ऑक्सीजन प्रदान करता है। आंकड़े बताते हैं कि पीपल का वृक्ष प्रतिदिन लगभग 250 लीटर आक्सीजन निर्गत करता है। जहाँ पीपल का वृक्ष होता है वहां आस-पास के क्षेत्रों में आक्सीजन का अभाव नहीं रहता है। पीपल के वृक्ष वानस्पतिक नाम फाइकस रिलीजियोसा है और यह मोरेसी कुल का है। पीपल का पेड़ लगभग 10 से 12 मीटर ऊँचा होता है। यह अनेक शाखाओं वाला विशाल वृक्ष होता है जो कई वर्षों तक जीवित रहता है। पीपल के वृक्ष की पत्तियाँ बहुत कोमल तथा चिकनी होती हैं। घनी शाखाओं के कारण यह शीतल छाया प्रदान करती हैं। पीपल के वृक्ष के नीचे का तापमान अन्य स्थानों की अपेक्षा 3 डिग्री सेल्सियस तक कम रहता है। वर्तमान समय में पूरा विश्व ग्लोबल वार्मिंग की भयावह समस्या का सामना कर रहा है यदि पृथ्वी पर पीपल, बरगद, पाकड़, नीम, आम और गूलर जैसे छायादार वृक्षों को बड़ी संख्या में लगा दिया जाये तो ग्लोबल वार्मिंग की त्रासदी को रोका जा सकता है। पीपल का वृक्ष औषधीय गुणों का भी भण्डार है। पीपल की छाल, पीपल के तनों से निकलने वाला दूध, पीपल का फल जिसे पीपली कहते हैं कई बीमारियों का रामबाण इलाज हैं। आयुर्वेद में पीपल के वृक्ष का बहुत महत्व है। अधिक से अधिक संख्या में पीपल के वृक्ष लगाकर हम वायुमण्डल में गैसों के नाजुक सन्तुलन को बनाए रख सकते हैं। इससे जहां एक ओर आक्सीजन के अभाव को दूर करने में मदद मिलेगी वहीं दूसरी ओर पृथ्वी के बढ़ते हुए तापमान को भी नियंत्रित करने में कामयाबी मिल सकती है।

सुरेश बाबू मिश्रा
वरिष्ठ साहित्यकार

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