इस समय पूरा उत्तरी भारत भीषण गर्मी की चपेट में है। शरीर को झुलसा देने वाली गर्मी सूरज का चढ़ता पारा और लू के थपेड़ों से मानव पशु-पक्षी और जीव-जन्तु सब बेहाल हैं। इस भीषण गर्मी के कारण जल का स्तर नीचे गिर रहा है, जो गम्भीर चिन्ता का विषय है। सूरज का पारा दिन और दिन चढ़ता ही जा रहा है और इसका कारण है ग्लोबल वार्मिंग।
हमारी पृथ्वी सूर्य की किरणों से ऊष्मा प्राप्त करती है सूर्य की किरणें वायुमण्डल से गुजरती हुईं पृथ्वी की सतह से टकराती हैं। पृथ्वी को ऊष्मा प्रदान कर यह किरणें परावर्तन की क्रिया के फलस्वरुप वापस लौट जाती हैं। मानव की धन की बढ़ती हवस के कारण वायुमण्डल की निचली परत में ग्रीन हाउस गैसों का एक आवरण सा बन गया है। यह आवरण लौटती किरणों के एक बड़े हिस्से को रोक लेता है। रुकी हुई यह किरणें धरती के तापमान को बढ़ा देती हैं। पृथ्वी के इस बढ़ते तापमान को ही ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं। ग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरुप हमारे वातावरण में कई प्रकार की विसंगतियां उत्पन्न हो रही हैं जो गहरे संकट की आहट है।
वायुमण्डल में सभी गैसें एक निश्चित अनुपात में हैं, मगर बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग के कारण गैसों का यह नाजुक सन्तुलन बिगड़ रहा है। पिछले सौ वर्षों के दौरान कार्बन-डाइआक्साइड की मात्रा में 24 लाख टन की वृद्धि हुई है जबकि आक्सीजन की मात्रा में 26 लाख टन की कमी आई है। यह स्थिति सम्पूर्ण मानवता के लिए बहुत चिन्ताजनक है, आक्सीजन प्राणवायु होती है। यदि हम अभी भी नहीं चेते तो वह दिन दूर नहीं जब घर से बाहर निकलते समय हमें अपनी पीठ पर आक्सीजन का छोटा सिलेण्डर टांगकर निकलना पड़ा करेगा।
ग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरूप पिछले दस वर्षों में धरती के औसत तापमान में 0.3 सेंटीग्रेड से 0.6 सेंटीग्रेड तक की वृद्धि हुई है। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी के तापमान में और वृद्धि होगी। जिसके कारण धु्रवों और ग्लेशियरों पर जमीं बर्फ पिघलने लगेगी। एक आकलन के अनुसार भूमण्डल का 2.5 प्रतिशत जल बर्फ के रूप में विद्यमान है। यदि धु्रवों और ग्लेशियरों की सारी बर्फ पिघल गई तो समुद्र का जल स्तर इतना बढ़ जायेगा कि पूरी पृथ्वी समुद्र के जल से जलमग्न हो जाएगी और पृथ्वी पर महाप्रलय आ जायेगी। इसलिए महाप्रलय की आहट को सुनें और ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए अधिक से अधिक वृक्ष लगायें। माना जाता है कि एक छायादार वृक्ष अपने आसपास के क्षेत्र का 2.5 सेंटीग्रेड फारेनहाइट तापमान कम कर देता है। इसलिए जितनी संख्या में छायादार वृक्ष पृथ्वी पर लग जायेंगे उतनी ही अधिक तेजी से हम ग्लोबल वार्मिंग को रोकने में सक्षम हो जायेंगे। ग्लोबल वार्मिंग रोकने के लिए बहुत सारे प्रयास किये जा सकते हैं। कुछ प्रयास ऐसे हैं जो विश्व के विभिन्न देशों की सरकारों द्वारा किये जा सकते हैं परन्तु वृक्षारोपण का कार्य जनता द्वारा किया जा सकता है। इसलिए हम सभी प्रतिवर्ष कम से कम एक वृक्ष लगाने का संकल्प लें।
सुरेश बाबू मिश्रा
सेवा निवृत्त प्रधानाचार्य