लघुकथा : नए मिजाज का शहर

रिटायर्डमेंट के बाद शर्मा जी अपने बेटे के पास बम्बई आकर रहने लगे थे। वे यू.पी. के एक कस्बे के रहने वाले थे। छोटा कस्बा होने के कारण कस्बे के सभी लोग एक-दूसरे से अच्छी तरह परिचित थे। शर्मा जी का अपना एक फ्रैन्ड सर्किल बना हुआ था। जब तक हफ्ते में एक बार सब लोग मिल नहीं लेते चैन नहीं पड़ता। सब एक-दूसरे के सुख-दुख मंे हाजिर रहते।
शर्मा जी को बम्बई आए तीन दिन हो गए थे। उनका बेटा और बहू दोनों जॉब करते थे। दोनों सुबह सात बजे ही ऑफिस के लिए निकल जाते और रात के नौ बजे के बाद ही घर लौटते। पत्नी तो अपने तीन वर्षीय पोते को नहलाने-धुलाने उसे स्कूल के लिए तैयार करने तथा सबके लिए खाना बनाने के काम में लगी रहती। इसलिए उन्हें समय का पता ही नहीं लगता। उधर शर्मा जी घर मंे अकेले पड़े-पड़े बोर होते रहते। तीन दिन में ही वे उकता गए।
आज उन्होंने मन ही मन तय किया कि वे अपने पड़ोसियों से मिलने जायेंगे और अपना एक सर्किल बनायेंगे। नाश्ता करने के बाद जब वे कपड़ा पहन कर बाहर जाने लगे तो उनकी पत्नी ने पूछा-“कहां जा रहे हो सुबह-सुबह ?“
“बस यहीं कालोनी में ही घूमने जा रहा हूँ।“ शर्मा जी ने घर से निकलते हुए कहा।
सबसे पहले वे सामने वाले फ्लैट में पहुंचे। उनकी नजर नेम प्लेट पर पड़ी। उस पर लिखा था-“एस.के. बनर्जी।“
उन्होंने कालबेल बजाई। नौकर ने आकर दरवाजा खोला। प्रश्नवाचक निगाहों से उसने शर्मा जी की ओर देखा। शर्मा जी ने कहा कि वे उसके मालिक से मिलने आए हैं। “साहब इस समय किसी से नहीं मिलते। शाम को सात बजे के बाद आइये।“ यह कहकर उसने शर्मा जी के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही गेट बन्द कर दिया।
शर्मा जी अगले फ्लैट पर पहुंचे। उस पर वी.आर. धस्माना की नेम प्लेट लगी हुई थी। शर्मा जी ने कालबेल बजाई। मिस्टर धस्माना ने गेट खोला और शर्मा जी से पूछा-“कहिए क्या काम है ?“
“मैं आपके बगल वाले फ्लैट में रहता हूँ। आपसे कुछ देर बात करना चाहता हूँ।“ शर्मा जी ने उनकी ओर आशा भरी नजरों से देखते हुए कहा।
“देखिये इस समय मैं आॅफिस के लिए तैयार हो रहा हूँ और जल्दी में हूँ। आप किसी दिन सन्डे में आइए।“ मिस्टर धस्माना ने बड़ी बेरुखी से कहा।
शर्मा जी ने हिम्मत नहीं हारी। वे बांयी तरफ वाले फ्लैट पर पहुंचे। पी.के. तिवारी की नेम प्लेट देखकर उन्हें आशा की किरण नजर आई। उन्होंने कालबेल बजाई। पी.के. तिवारी ने गेट खोला। जब शर्मा जी ने उन्हें अपने आने का मकसद बताया तो तिवारी जी उन्हें समझाने वाले अन्दाज में बोले-“आप शायद यहां नए-नए आये हैं इसलिए यहां की आवो हवा से परिचित नहीं हैं। यह नए मिजाज का शहर है जनाब। यहां हर कोई अपने काम से काम रखता है। किसी को दूसरे के बारे में जानने की फुर्सत नहीं। यहां की भागमभाग भरी जिन्दगी में सालों तक लोगों को यह भी पता नहीं चल पाता कि उनके ऊपर वाले फ्लैट में कौन रहता है और नीचे वाले फ्लैट में कौन ?“
यह सब सुनकर शर्मा जी हक्का-वक्का रह गए।

साभार – सुरेश बाबू मिश्रा
साहित्यकार

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