लघुकथा : चक्रब्यूह

घड़ी पर नजर डाली चार बजे थे। जैसे-जैसे घड़ी की सुईयां आगे बढ़ रही थीं, वैसे-वैसे रजनी के दिल की धड़कन बढ़ने लगी थी। चार बजे के बाद अक्सर उसके घर अंकल आया करते थे।

रजनी अपने कमरे में बैठी थी, तभी कालबेल बज उठी। शायद वर्मा अंकल ही होंगे यह सोचकर रजनी का चेहरा भय से पीला पड़ गया। पिछले एक साल की घटनाएं चलचित्र की भांति उसकी आँखों के सामने घूम गई। पिछले साल आफिस से आते समय रजनी के पापा का एक्सीडेन्ट हो गया था। एक्सीडेन्ट में उनके दोनों पैर टूट गए थे। आफिस के अन्य लोगों के साथ वर्मा अंकल पापा को लेकर घर आए थे। वर्मा अंकल उसके पापा के साथ आफिस में ही काम करते थे।

धीरे-धीरे वे रोज उसके घर आने लगे। उन्होंने पापा के इलाज के लिए दिन-रात एक कर दिया। और रुपयों-पैसों से भी उसके परिवार की मदद की। रजनी का बड़ा भाई एम.एस.सी. करने के बाद घर बैठा था। वर्मा अंकल ने भाग-दौड़ करके उसे एक कम्पनी में जाॅब दिला दी जिससे घर का खर्चा चलने लगा। रजनी फस्र्ट ईयर में पढ़ती थी। पापा के एक्सीडेन्ट के कारण वह अपना पूरा कोर्स नहीं खरीद पाई थी। वर्मा अंकल ने उसे जरूरी किताबें और गाइडें लाकर दीं।
इस प्रकार वर्मा अंकल रजनी के परिवार के लिए फरिश्ता बनकर आए थे। रजनी के पापा-मम्मी उनकी तारीफे करते नहीं थकते थे। शुरु-शुरू में रजनी भी इसी मुगालते में रही थी।

एक दिन रजनी अपने कमरे में बैठी पढ़ रही थी। माँ बाजार गई थी और भाई अपनी कम्पनी के आफिस। तभी वर्मा अंकल रजनी के कमरे में आ गए और रजनी को अकेला पाकर किसी कामुक दरिन्दे की भांति उसे दबोच लिया। घबराई-सकुचाई रजनी कुछ नहीं कर पाई और वर्मा अंकल काफी देर तक उसके साथ मनमानी करते रहे। इसके बाद तो अंकल जब भी रजनी को अकेला देखता उसे दबोच लेता और किसी जानवर की तरह उसे नोचता खसोटता रहता। रजनी के मौन प्रतिरोध के कारण अंकल अपने असल मकसद में तो कामयाब नहीं हो पाया था मगर वह रजनी के शरीर को मसलता रहता। जिससे रजनी मानसिक रूप से बहुत परेशान रहने लगी। रजनी ने अपनी माँ को बातों-बातों में कई बार उसके बारे में बताना चाहा मगर उन्होंने बात को सुना-अनसुना कर दिया। पापा की हालत देखकर रजनी की उनसे बात करने की हिम्मत नहीं हुई। वर्मा अंकल ने रजनी के चारों ओर ऐसा चक्रव्यूह बना दिया था जिससे बाहर निकलने का कोई रास्ता उसे नजर नहीं आ रहा था।

रजनी अपने कमरे में बैठी थी। माँ बाजार गई थी और भाई अपने आॅफिस। वर्मा अंकल रजनी के पापा के कमरे में बैठे उनसे बातचीत कर रहे थे।
रजनी ने मन ही मन कुछ निश्चय किया और किताबें लेकर पढ़ने बैठ गई। तभी वर्मा अंकल उसके कमरे में आए और रजनी को दबोच लिया। रजनी ने प्रतिरोध किया मगर अंकल की बलिष्ठ भुजाओं से अपने को छुड़ा नहीं पाई। उसने रजनी के कुर्ते में हाथ डाल दिए, तभी रजनी पूरी ताकत लगाकर चीखी।
रजनी की चीख सुनकर उसके पापा की टूटी टांगों में पता नहीं कहां से इतनी ताकत आ गई कि वे बैसाखियों के सहारे उसके कमरे में आ गए। उसकी माँ बाजार से लौट आई थी वह दौड़ती हुई उसके कमरे में पहुँची। दोनों ने एक साथ पूछा, “क्या हुआ बेटी, तुम चीखी क्यों ?“

रजनी ने कुछ कहने के बजाय मेज पर रखा मोबाइल उठाया और उसे मम्मी-पापा को दिखाया। मोबाइल में वर्मा की करतूतें देख उसके पापा की आँखों में खून उतर आया। वे बोले-“वर्मा तूने मेरी लाचारी का नाजायज फायदा उठाया। तू तो भेड़ की खाल में भेड़िया निकला। दफा हो जा मेरी आँखों के सामने से नहीं मेरे हाथों तेरा खून हो जाएगा।“ रजनी की माँ ने घृणा से वर्मा के मुँह पर थूक दिया। वर्मा लम्बी-लम्बी डग भरता हुआ घर से बाहर निकल गया।

– सुरेश बाबू मिश्रा
साहित्यकार

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