लघुकथा : सहनशीलता

विनय कुमार का मन आज आफिस के काम में नहीं लग रहा था। सुबह आफिस आते समय उन्होंने अपनी पत्नी को बुरी तरह से डांट दिया था। उन्हें अपने किए पर बड़ा पछतावा हो रहा था। बार-बार पत्नी का चेहरा उनकी आँखों के सामने आ जाता। पूरे दिन वह इसी बारे में सोचते रहे।
आफिस बन्द हुए आधा घन्टा बीत चुका था, मगर उनकी इच्छा घर जाने की नहीं हो रही थी। उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा था कि वे अपनी पत्नी का सामना कैसे करंेगे। तरह-तरह के ख्याल उनके मन में आ रहे थे।
तभी ऑफिस के कर्मचारी राजू ने उनके पास आकर पूछा,-“सर आपका केबिन बन्द कर दूँ या आप अभी और काम करेंगे ?“
विनय कुमार बोले, “ठीक है बन्द कर दो, अब बाकी काम कल करेंगे।“ यह कहकर वे बैग उठाकर घर की ओर चल दिए।
उन्होंने घर पहुंचकर कालबैल बजाई। उनकी पत्नी ने आकर दरवाजा खोला। विनय कुमार को देखकर वे मुस्कुराईं। उनके हाथ से बैग लेते हुए वे बोलीं, “आज बड़ी देर कर दी आने में।“
उन्हें देखकर यह लग ही नहीं रहा था कि सुबह विनय कुमार ने उन्हें बुरी तरह डांटा था।
विनय कुमार कपड़े चेन्ज करके डाइनिंग रूम में आकर बैठ गये। तब तक उनकी पत्नी चाय ले आईं। साथ में पकौड़ी थीं। पकौड़ी विनय कुमार को बहुत पसन्द थीं।
विनय कुमार उनकी ओर देखते हुए बोले-“आज मैंने तुम्हें बिना बात पर डांट दिया था। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। मुझे माफ कर दो।“
“माफी मांग कर क्यों मुझे शर्मिन्दा कर रहे हो। जब प्यार मुझे करते हो तो डांटने के लिए किसी और को तो ढूढ़ोगे नहीं।“ उनकी पत्नी उनकी ओर प्यार भरी नजरों से देखते हुए बोलीं।
पत्नी का अपने प्रति यह अगाध प्रेम देखकर विनय कुमार का मन अभिभूत हो उठा था।

सुरेश बाबू मिश्रा ,साहित्य भूषण, बरेली

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