16 अगस्त पुण्य तिथि पर विशेष ” राजनीति के अजातशत्रु अटल बिहारी वाजपेयी “

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का व्यक्तित्व बहुआयामी था। वे ओजस्वी वक्ता, भावुक कवि, प्रखर पत्रकार एवं कुशल राजनेता थे। उनके व्यक्तित्व में न असाधारण दृढ़ता एवं संवेदनशीलता का अद्भुत मिश्रण था। उन्हें राजनीति का अजात शत्रु माना जाता है। वे सार्वजनिक जीवन में शुचिता के प्रतीक पुरुष थे।
उत्तर प्रदेश में आगरा जनपद के मूल निवासी पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी मध्य प्रदेश की ग्वालियर रियासत में अध्यापक थे। ग्वालियर में शिंदे की छावनी में 25 दिसम्बर को ब्रह्म मुहूर्त में अटल जी का जन्म हुआ। उनकी माँ कृष्णा वाजपेयी एक धर्मपरायण महिला थीं।
अटल जी को काव्य के गुण अपने पिता जी से विरासत में मिले। उनके पिता जी कृष्ण बिहारी वाजपेयी वृज भाषा के एक सिद्धहस्त कवि थे। उनसे प्रेरणा लेकर बचपन से ही अटल जी के मन मंे कविता के प्रति गहरा लगाव उत्पन्न हो गया। महात्मा रामचन्द्र वीर द्वारा रचित अमर कृति ‘विजय पताका’ पढ़कर अटल जी कविता के प्रति लगाव और गहरा हो गया।
बचपन से ही वे एक प्रतिभाशाली छात्र थे। उनकी बी.ए. तक ही शिक्षा ग्वालियर के विक्टोरिया कालेज में सम्पन्न हुई। इसके बाद वे कानपुर चले गए। वहां डी.ए.वी. कालेज से एम.ए. राजनीति शास्त्र की परीक्षा उन्होंने प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। उन्होंने कानपुर में ही एल.एल.बी. की पढ़ाई प्रारम्भ की, मगर उसे बीच मंे ही विराम देकर वे पूरी निष्ठा से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्य में जुट गए। संघ के कार्य के साथ-साथ उन्होंने राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन का सम्पादन बहुत लगन एवं कुशलता के साथ किया।
सन् 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई। अटल जी जनसंघ के संस्थापक सदस्य थे। अपने भव्य व्यक्तित्व एवं अद्भुत भाषण की कला के बल पर उन्होंने राजनीति के शुरुआती दौर में ही अपनी अलग पहचान बना ली। लोग उनके भाषणों को सुनकर मंत्रमुग्ध हो जाते।
सन् 1957 के आम चुनाव में वे बलराम से जनसंघ के टिकट पर लोकसभा का चुनाव जीते। और इस प्रकार वे सांसद के रूप में दूसरी लोकसभा में पहुंचे। फिर उनकी जीत का यह सिलसिला अनवरत चलता रहा।
सन् 1968 से 1973 तक वो भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष रहे। सन् 1975 में लगे आपातकाल के दौरान वे अन्य नेताओं के साथ जेल में रहे।
सन् 1977 में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में देश में जनता पार्टी की सरकार बनी। इस सरकार में उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया। विदेशमंत्री रहते हुए उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिवेशन में हिन्दी में भाषण देकर करोड़ों हिन्दी प्रेमियों का दिल जीत लिया। विदेशमंत्री के रूप में वे बहुत लोकप्रिय हुए।
सन् 1980 में भारतीय जनता पार्टी बनी। सन् 1980 से 1986 तक वे भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे। इस दौरान वे भारतीय जनता पार्टी संसदीय दल के नेता रहे। अटल जी नौ बार सांसद चुने गये। 1962 से 1967 तथा 1986 मंे वे राज्य सभा के सदस्य भी रहे। नरसिम्हा राव की सरकार ने उन्हें श्रेष्ठ सांसद के सम्मान से पुरस्कृत किया।
16 मई 1996 को वे पहली बार प्रधानमंत्री बने। मगर उनकी सरकार केवल 13 दिन तक चल सकी। लोकसभा में अपना बहुमत सिद्ध न कर पाने की स्थिति में उन्हें 31 मई 1996 को प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र देना पड़ा।
सन् 1998 के आम चुनाव में अपनी सहयोगी पार्टियों के साथ उन्होंने लोकसभा में अपना बहुमत सिद्ध किया और इस तरह एक बार फिर वे प्रधानमंत्री बने। इस बार उनकी सरकार 13 महीनों तक चली। एआईडीएमके पार्टी द्वारा गठबंधन से अपना समर्थन वापस लेने के कारण उनकी सरकार गिर गई और देश में एक बार फिर आम चुनाव हुए।
1999 में हुए चुनाव राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साझा घोषणापत्र पर लड़े गए और इन चुनावों में अटल जी के नेतृत्व को एक प्रमुख मुद्दा बनाया गया। गठबंधन को बहुमत हासिल हुआ और एक बार फिर अटल जी ने प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली। उनके नेतृत्व में 13 दलों की गठबंधन सरकार ने पांच वर्षों मंे देश की प्रगति के कई नए आयाम स्थापित किए। उनमें अद्भुत नेतृत्व क्षमता थी।
प्रधानमंत्री रहते हुए अटल जी ने भारत को परमाणु सम्पन्न देश बनाकर इतिहास रच दिया। अटल सरकार ने 11 मई और 13 मई 1998 को पोखरण में पांच भूमिगत परमाणु परीक्षण कर पूरे विश्व को चैंका दिया। अपने इस कदम से उन्होंने भारत को विश्वभर में एक सुदृढ़ वैश्विक शक्ति के रूप मंे स्थापित कर दिया। इसके बाद पश्चिमी देशों द्वारा भारत पर अनेक प्रतिबन्ध लगाए गये मगर उनकी सरकार ने दृढ़ता पूर्वक इन सबका सामना किया और देश को आर्थिक विकास की ऊँचाईयों तक पहुंचाया।
उनके नेतृत्व में 19 फरवरी 1999 को ‘सदा-ए-सरहद’ नाम से दिल्ली से लाहौर तक बस सेवा शुरू की गई। वाजपेयी स्वयं बस में बैठकर लाहौर गए और पड़ोसी देश पाकिस्तान से आपसी सम्बन्धों को बढ़ाने की अनोखी पहल की।
अटल जी की लाहौर यात्रा के कुछ महीने बाद ही पाकिस्तान ने भारत के साथ विश्वासघात किया। पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ की शह पर पाकिस्तानी सेना व आतंकवादियों ने कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया। अटल जी के नेतृत्व मंे कारगिल युद्ध लड़ा गया। इस युद्ध में भारतीय सेना के जवानों ने कारगिल की 16 हजार फीट ऊंची पहाड़ियों पर अपने रक्त से विजय का एक नया इतिहास रचा और पाकिस्तान को उसके विश्वासघात का करारा जबाव दिया।
उनकी सरकार ने भारत के चारों कोनों को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना की शुरुआत की। यह अटल जी की बहुत ही महत्वाकांक्षी परियोजना थी। इसके अन्तर्गत दिल्ली, कलकत्ता, चेन्नई व मुम्बई को राजमार्गों से जोड़ा गया। ऐसा माना जाता है कि अटल जी के शासनकाल में जितनी सड़कों का निर्माण हुआ उतना निर्माण किसी के शासनकाल में नहीं हुआ।
अटल जी अपने विद्यार्थी जीवन मंे ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्वयंसेवक बन गये थे। संघ के निर्देशन में ही वे राजनीति में गये और अपनी एक अलग पहचान बनाई। वे अपने पूरे जीवन भर संघ के निष्ठावान और समर्पित स्वयंसेवक रहे। राष्ट्रहित और मातृभूमि की सेवा उनके लिए सर्वोपरि रही।
एक कुशल राजनेता होने के साथ-साथ वे एक भावुक कवि थे। उन्होंने कई कालजयी कविताओं की रचना की। उनकी कुछ कविताएं जैसे-बाधाएं आती हैं आएं, आजादी का दिन मना, आओ फिर से दिया जलाएं, हिन्दू तन मन, हिन्दू जीवन, मौत से ठन गई, पाठकों द्वारा बहुत सराही गईं।
अटल जी अद्भुत वक्ता थे। उनकी भाषण शैली उन्हें औरों से अलग करती थी। वे भाषण के दौरान ही जनता से ऐसे जुड़ जाते थे कि लोग वर्षों तक उनके शब्दों को नहीं भूल पाते थे। वे लगभग पचास वर्ष तक संसद में रहे, सदन में जब वे भाषण देते तो अक्सर लोग ठहाके लगाने पर मजबूर हो जाते। उनके भाषण अपनी पार्टी ही नहीं दूसरी पार्टियों के नेताओं द्वारा बहुत सराहे जाते थे।
अटल जी एक प्रखर पत्रकार थे। वे राष्ट्र धर्म और पांचजन्य के प्रथम संपादक थे। भाऊराव देवरस और दीनदयाल के प्रयासों से सन् 1947 में राष्ट्र धर्म शुरू हुआ और इसके सम्पादन का दायित्व अटल जी को सौंपा गया। 31 अगस्त 1947 को रक्षाबन्धन पर्व के पावन अवसर पर राष्ट्र धर्म का पहला अंक प्रकाशित हुआ। इसके एक वर्ष बाद एक जनवरी 1948 को पांचजन्य का पहला अंक प्रकाशित हुआ। उन दोनों का सम्पादन अटल जी ने कई वर्षों तक बड़ी लगन, निष्ठा एवं कुशलता के साथ किया।
अटल जी बड़े हाजिर जवाब थे, एक बार लाहौर में प्रेस कान्फ्रेन्स के दौरान पाकिस्तान की एक तेज तर्रार महिला पत्रकार ने अटल जी से कहा-“सर मैं आपसे शादी करना चाहती हूँ, मगर मेरी एक शर्त है मुझे मुँह दिखाई की रस्म में कश्मीर चाहिए।“
हाजिर जवाब अटल जी ने कहा-“मोहतरमा मुझे आपकी शर्त मंजर है, मैं आपको मुँह दिखाई की रस्म में कश्मीर देने के लिए तैयार हूँ, मगर मुझे दहेज में पूरा पाकिस्तान चाहिए।“ यह सुनकर पूरा कॉन्फ्रेंस हाल ठहाकों से गूँज उठा, और उस महिला पत्रकार की हालत देखने लायक थी।
अटल जी राजनीति के अजातशत्रु माने जाते हैं। अपने पचास वर्ष के लम्बे राजनीतिक जीवन में उन्होंने कभी किसी राजनीतिक दल के नेता पर व्यक्तिगत आक्षेप नहीं लगाया। उनकी लोकप्रियता और स्वीकार्यता हर पार्टी में थी। अपने प्रधानमंत्री काल मंे दलगत राजनीति से परे जिन विशिष्ट नेताओं से उनके घनिष्ठ सम्बन्ध थे उनमें नरसिम्हा राव, ज्योति वसु, सोमनाथ चटर्जी, इन्द्र कुमार गुजराल, करुणानिधि, शरद पवार आदि के नाम प्रमुख हैं।
अटल जी को 2009 मंे एक दौरा पड़ा जिसके बाद वह बोलने में अक्षम हो गए थे। 11 जून 2018 को उन्हें किडनी में संक्रमण के कारण अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती कराया गया था। डाक्टरों के अथक प्रयासों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका। 16 अगस्त 2018 को हम सबका प्रिय नेता काल के क्रूर हाथों द्वारा हमसे छीन लिया गया। उनकी अन्तिम यात्रा मंे उमड़ा जनसैलाव देश में उनकी लोकप्रियता का प्रतीक था
विश्व में ऐसे कई युग पुरुषों का जन्म हुआ है, जिन्होंने अपने राष्ट्र और कालचक्र पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है। अटल जी उन्हीं महापुरुषों में से एक हैं। आज वे हमारे मध्य नहीं हैं मगर उनके आदर्श और जीवन मूल्य सदैव समाज को प्रेरणा देते रहेंगे।
सुरेश बाबू मिश्रा
साहित्य भूषण

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