रिपुदमन सिंह बेचैनी से अपनी चौपाल पर टहल रहे थे। उनके चेहरे पर चिंता और झुंझुलाहट के भाव थे। पुश्तों से रमनगला के लोग उनके खेतों पर मज़दूरी करते चले आ रहे थे। जो सिंह साहब ने दे दिया वह रख लिया, कभी उफ तक नहीं की। मगर पिछले चुनावों से हवा का रुख बदल गया था। आज तक जितने भी चुनाव हुए थे रमनगला के लोगों ने आँख मूँद कर उसी कॅन्डीडेट का समर्थन किया जिसके लिए रिपुदमन सिंह ने हुक्म कर दिया। मगर इस चुनाव में रिपुदमन के लाख डराने-धमकाने के बावजूद उन्होंने रिपुदरन के कॅन्डीडेेट को वोट न देकर अपनी बिरादरी के कॅन्डीडेट को वोट दिया था। रिपुदमन सिंह खून का घूँट पीकर रह गए थे। अभी वे इस अपमान को ढंग से पचा भी नहीं पाए थे कि रमनगला के लोगों ने रिपुदमन सिंह की प्रभुसत्ता को एक और चुनौती दे डाली थी।
इस बार जब खेतों पर काम शुरू हुआ तो रमनगला के लोगों ने पुरानी मज़दूरी दरों पर काम करने से साफ इंकार कर दिया था। सिंह साबह हाथ मलते रह गए थे। धान की रोपाई का समय धीरे-धीरे निकला जा रहा था मगर रमनगला के मज़दूर टस से मस नहीं हो रहे थे।
रिपुदमन सिंह यह बात अच्छी तरह समझ गए थे कि यह सब रमनगला के मुखिया रामवचन की शह पर हो रहा था। रामवचन का दिमाग इन दिनों सातवें आसमान पर था। हाल में हुए चुनावों से वह खुद को नेता समझने लगा था। रामवचन भी पहले रमनगला के अन्य लोगों की तरह रिपुदमन सिंह के खेतों पर काम करता था। मगर जब से रामवचन का लड़का सरकारी नौकरी पर लगा था रामवचन ने ठाकुर के खेतों पर काम करना बंद कर दिया था।
पाँच-छः साल पहले रामवचन ने पाँच बीघे का एक खेत खरीद कर उस पर खेती शुरू की थी। अपनी मेहनत से रामवचन ने अब अपनी ज़मीन बढ़ाकर बारह बीघे कर ली थी। लड़का भी बीच-बीच में रुपये-पैसे से उसकी मदद कर देता था इसलिए रामवचन का परिवार बिरादरी में एक खाता-पीता परिवार बन गया था।
पार्टी नेताओं के साथ रहने से रामवचन को नई-नई बातों की जानकारी मिलती रहती थी जिससे उसमें एक अनोखा आत्म विश्वास आ गया था। यद्यपि रामवचन का उम्मीदवार चुनाव हार गया था मगर उसके उत्साह में कोई कमी नहीं आई थी। वह अब भी गाँव-गाँव में जाकर अपनी बिरादरी के लोगों को समझाता था।
रिपुदमन सिंह के कानों में ये बातें पिघले हुए शीशे के समान पड़ती थीं। वह घायल नाग की तरह फुफकार कर रह जाते थे। रामवचन के बढ़ते प्रभाव को रोकने और रमनगला के लोगों में फूट डालने की उन्होंने काफी कोेशिश की थी मगर उन्हेें इसमें कामयाबी नहीं मिली थी। अब वे किसी ऐसे उपाय की तलाश में थे कि साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।
रिपुदमन सिंह इन्हीं विचारों में खोए हुए थे कि तभी उनके नौकर ने आकर उन्हें दारोगा जी के आने की सूचना दी। रिपुदमन सिंह उठकर बाहर आ गए और दरोगा जी का स्वागत करते हुए बोले-‘आइए दारोगा जी, आज कैसे रास्ता भूल गए? काफी दिनों से आपके दर्शन नहीं हुए?’
‘हाँ, इलेक्शन की वजह से कई महीनों से इधर आना नहीं हुआ। आज इधर आया तो सोचा आपसे मिलता चलूँ।’
‘बड़ी कृपा की आपने। और सुनाइए क्या हाल चाल है?’
‘सब ठीक है। आप सुनाइए कुछ चिन्तित मालूम पड़ रहे हैं सिंह साहब, क्या बात है?’
‘नहीं-नहीं ऐसी कोई बात नहीं है।’ रिपुदमन सिंह मन के भावों को छुपाते हुए बोले।
‘खैर, आप न बताना चाहें तो कोई बात नहीं है।’ दारोगा जी कनखियों से रिपुदमन सिंह को देखते हुए बोले।
दारोगा जी से रिपुदमन सिंह की काफी घनिष्ठता थी और वास्तव में पुलिस वालों के मेलजोल के कारण ही उनका गाँव में इतना रुतबा था। रिपुदमन सिंह ने अब दारोगा जी को सारी बातें बता देना ही उचित समझा।
‘हूँ… तो सारे झगड़े की जड़ रामवचन सिंह ही है।’ दारोगा जी बोले- ‘मामला ज़रा टेढ़ा है। कोई सीधी कार्यवाही करने पर मामला तूल पकड़ सकता है। हमें फूँक-फूँक कर कदम रखना होगा। फिर भी चिंता करने की कोई बात नहीं है, कोई न कोई उपाय निकल ही आएगा।’
फिर दारोगा जी और रिपुदमन सिंह में काफी देर तक खुसर-पुसर होती रही। दोनों लम्बे समय तक मन्त्रणा करते रहे। दारोगा जी के आने की खुशी में रिपुदमन सिंह ने दावत का इंतज़ाम किया। देर रात तक पीने-पिलाने का दौर चलता रहा।
आधी रात के बाद दारोगा जी विदा हुए। दारोगा जी को विदा करने के बाद रिपुदमन सिंह ने एक पैग और बनाकर पिया था। अब उनके चेहरे का तनाव खत्म हो चुका था और वह काफी निश्चिंत दिखाई दे रहे थे।
उधर इस सब से बेखबर रामवचन अपनी खपरैल में लेटा-लेटा हुक्का गुड़गुड़ा रहा था।
‘थोड़ी सी तम्बाकू हुक्के में और डाल देना’ रामवचन ने अपनी बीवी मोरकली को आवाज़ लगाई थी।
‘इतनी रात हो गई…. सोए नहीं?’ मोरकली चिलम में तम्बाकू डालते हुए बोली।
‘हाँ, आज नींद नहीं आ रही है।’
‘क्या बात है, कुछ परेशान लग रहे हो?’ मोरकली पास बैठते हुए बोली।
‘तू तो जानती ही है सुखपाल की माँ, लड़के को चिट्ठी लिखी थी कि खाद के लिए कुछ रुपये भेज दे, मगर बीस दिन से ऊपर हो गए इस बात को उसने अभी तक रुपये नहीं भेजे।’
‘नहीं भेज पाया होगा बेचारा। घर-गृहस्थी के पचास झंझट होते हैं। फिर मंहगाई कितनी बढ़ गई है…. ऊपर से शहर का खर्चा।’
‘वह तो ठीक है मगर धान की फसल में खाद कैसे लगे मुझे तो यही चिंता खाए जा रही है।’
‘कहीं से रुपये उधार ले लो, जब फसल हो जाएगी तो लौटा देंगे।’ मोरकली मशविरा देते हुए बोली।
‘मैंने कई जगह कोशिश की मगर बात नहीं बनी। रिपुदमन सिंह चुनाव की वजह से पहले ही चिढ़े बैठे हैं। उनकी वजह से गाँव में रमनगला के लोगों को कोई कर्जा देने को तैयार नहीं है।’ रामवचन के स्वर में गहरी निराशा झलक रही थी। ‘फिर क्या किया जाए?’ मोरकली ने गहरी श्वांस ली।
‘मैं एक बात कहूँ अगर तू बुरा न माने तो?’ रामवचन मोरकली की ओर देखते हुए बोला।
‘हाँ-हाँ कहो।’
‘ऐसा करते हैं, तुम्हारी हंसुली गिरवी रख देते हैं। हज़ार-बारह सौ रुपये मिल जाएँगे। जब रुपया होगा छुड़ा लेंगे।’ मोरकली को इसमें भला क्या आपत्ति हो सकती थी। वह बोली- ‘जैसा तुम ठीक समझो।’
दूसरे दिन सवेरे ही रामवचन बैलगाड़ी लेकर शहर चल दिया था। रिपुदमन सिंह तो इसी ताक में थे। वे भी शहर पहुँच गए और अपनी गोटियाँ फिट करने लगे।
उन दिनों खाद की बड़ी किल्लत चल रही थी। शहर में खाद की जमकर कालाबाज़ारी हो रही थी।
रामवचन ने पहले एक जान-पहचान की दुकान पर जाकर चौदह सौ रुपये में हंसली गिरवी रखी फिर वह खाद की तलाश में निकल पड़ा। रामवचन ढूँढ़ते-ढूँढ़ते परेशान हो गया मगर ऐसा लग रहा था मानो खाद बाज़ार से गायब हो गई थी। अधितकर खाद की दुकानों में ताले लगे हुए थे। जो दुकानें खुली थीं उन पर भी ‘स्टाॅक निल’ का बोर्ड लगा हुआ था। ढूँढ़ते-ढूँढ़ते शाम हो गई तब कहीं जाकर रामवचन को दो सौ रुपये बोरे के हिसाब से पाँच बोरे खाद मिल पाई। पैसा चुकाकर खाद के बोरे लादकर रामवचन ने बैलगाड़ी गाँव की ओर मोड़ दी।
शाम का धुंधलका छाने लगा था। रामवचन का गाँव शहर से दस किलोमीटर दूर था। रामवचन बैलों को हाँकता हुआ चला जा रहा था। उसे जल्दी घर पहुँचने की चिंता सताने लगी थी। वह सोच रहा था- अंधियारी रात है इसलिए अंधेरा घिरने से पहले ही घर पहुँच जाए तो अच्छा रहेगा।
रामवचन की बैलगाड़ी अभी शहर की सीमा पार कर गाँव जाने वाली सड़क पर पहुँची ही थी कि सामने से आती पुलिस की जीप ने उसका रास्ता रोक लिया। रामवचन ने बैलगाड़ी रोककर पुलिस वालों को नमस्ते की। जीप में से एक सब-इंस्पेक्टर उतरा। उसने रामवचन से रौब से पूछा- ‘तुम्हारी गाड़ी में क्या है?’
‘खाद है साहब।’ रामवचन ने बड़े निश्चिन्त स्वर में कहा।
‘खाद! खाद तुम्हें कहाँ से मिल गई?’ सब इंस्पेक्टर विस्मय से बोला- ‘ज़रा गाड़ी की तलाशी लो।’ उसने सिपाहियों को आदेश दिया।
‘खाद के पाँच बोरे हैं साहब।’ एक सिपाही तलाशी लेते हुए बोला। ‘मुझे तो दाल में कुछ काला नज़र आ रहा है साहब।’ दूसरे सिपाही ने शंका जाहिर की।
‘मुझे तो यह खाद चोरी की मालूम पड़ रही है साहब।’ तीसरा सिपाही बोला। सब-इंस्पेक्टर ने रामवचन को ऊपर से नीचे तक घूरा फिर कड़ककर पूछा- ‘यह खाद तुम कहाँ से चुराकर लाए हो?’
‘हम कोई चोर उचक्के नहीं है साहब। यह खाद हम बाज़ार से खरीदकर लाए हैं।’ रामवचन निर्भीकता पूर्वक बोला।
‘किसके यहाँ से खरीदी है?’ सब-इंस्पेक्टर ने दूसरा प्रश्न दागा। अब रामवचन घबराया। उसे अपनी गलती का अहसास हुआ। उसने खाद खरीदते समय दुकानदार का नाम तो पूछा ही नहीं था। फिर भी वह किसी तरह साहस जुटाकर बोला- ‘दुकानदार का नाम तो मुझे मालूूम नहीं है साहब।’
‘हूँ!’ सब-इंस्पेक्टर गुर्राया। सब इंस्पेक्टर के हाव-भाव से अब रामवचन को अंदर ही अंदर घबराहट सी होने लगी थी। वह चुपचाप खड़ा था।
‘तुम उस दुकान तक हमको लेकर जा सकते हो?’ सब-इंस्पेक्टर कुछ सोचता हुआ बोला। ‘हाँ-हाँ क्यों नहीं साहब।’ रामवचन उत्साहित स्वर में बोला। अब उसकी जान में जान आई।
‘ठीक है, ये बोरे जीप में डाल लो और तुम भी बैठ जाओ।’
रामवचन ने सब-इंस्पेक्टर के आदेश का पालन किया। सब-इंस्पेक्टर ने एक सिपाही को बैलगाड़ी को थाने लाने का आदेश दिया और स्वयं रामवचन को लेकर शहर की ओर चल दिया।
रामवचन के बताए हुए रास्तों पर होती हुई जीप उस दुकान पर पहुँची जहाँ से रामवचन ने खाद खरीदी थी। पुलिस की जीप में रामवचन को बैठा देखकर दुकानदार सशंकित हो उठा। पलक झपकते ही वह सारा माजरा समझ गया। सब-इंस्पेक्टर ने पूछा-‘क्या इस आदमी ने खाद के ये बोरे तुम्हारी दुकान से खरीदे हैं?’
‘कैसी बातें कर रहे हैं हुजूर? मेरे यहाँ तो दस-पंद्रह दिन से खाद ही नहीं है। यह देखिए ‘स्टाॅक निल’ का बोर्ड लगा हुआ है।’ दुकानदार रंग बदलते हुए बोला।
‘सेठ जी, क्यों झूठ बोल रहे हो? भगवान से तो डरो। अभी दो घंटे पहले ही तो तुम्हारी दुकान से खाद ले गया था।’ रामवचन ने आहत स्वर में कहा।
‘आप इसकी बातों में न आइए साहब। लगता है ये खाद के बोरे कहीं से चुरा लाया है और पकड़े जाने पर मेरे मत्थे मढ़ना चाहता है।’
सब-इंस्पेक्टर ने रामवचन को आग्नेय नेत्रों से घूरा। रामवचन सहम गया। उसने कुछ कहना चाहा मगर शब्द उसके गले में ही अटक कर रह गए।
दुकानदार सब-इंस्पेक्टर को एक तरफ ले गया। सौ-सौ के कुछ नोट सब इंस्पेक्टर की जेब में ठूंसते हुए बोला- ‘हम तो आपके सेवक हैं हुजूर। हमें किस लफड़े में फंसा रहे हो?’
सब-इंस्पेक्टर मुस्कराया और रामवचन की ओर आते हुए बोला-‘चलो, थाने चल कर ही इससे पूछताछ की जाएगी।
थाने पहुँच कर सब-इंस्पेक्टर ने रामवचन को लाॅकअप में बंद करने का आदेश दे दिया। फिर सब-इंस्पेक्टर दूसरे कमरे में पहुँंचा। वहाँ रिपुदमन सिंह पहले से ही दावत का इंतज़ाम किए बैठे थे। पीने-पिलाने का दौर चलने लगा। रिपुदमन सिंह और सब-इंस्पेक्टर से ठहाके दूर-दूर तक गूँज रहे थे।
दूसरे कमरे में सिपाही रामवचन को लाठियों से पीठ रहे थे और उससे सच उगलवाने की कोशिश कर रहे थे। तलाशी के बहाने सिपाहियों ने रामवचन के बचे हुए चार सौ रुपये भी हथिया लिए थे। पिटते-पिटते रामवचन बेहोश होकर ज़मीन पर गिर गया था। जब सिपाहियों ने देखा कि रामवचन में अब कोई तन्त नहीं रहा है तो उन्होंने रामवचन को पीटना बंद कर दिया था। रामवचन से बरामद खाद के बोरे रातों-रात रिपुदमन सिंह की हवेली में पहुँचा दिए गए थे। इसके एवज में रिपुदमन सिंह ने सौ-सौ के कुछ कड़क नोट सब-इंस्पेक्टर की जेब में डाल दिए थे।
रमनगला के लोगों में जब रामवचन की गिरफ्तारी की खबर पहुँची थी तो वहाँ खलबली मच गई थी। कुछ लोग अपनी पार्टी के नेताओं को खबर देने के लिए शहर दौड़े मगर वहाँ पहुँचने पर पता चला कि नेता लोग कुछ काम से राजधानी गए हुए हैं और तीन-चार दिन में लौटेंगे।
रमनगला के लोगों ने इधर-उधर हाथ-पैर मारे मगर जब कोई चारा नहीं रहा तो रामवचन की बीवी मोरकली रमनगला के कुछ बुजुर्ग लोगों को लेकर रिपुदमन सिंह की हवेली पहंँुची। रिपुदमन सिंह उस समय तख्त पर बैठे दातून कर रहे थे। मोरकली को रमनगला के कुछ लोगों के साथ आता देखकर वे मन ही मन मुस्कराए।
‘मेरे आदमी को छुड़ा लीजिए मालिक ।’ मोरकली रिपुदमन सिंह के पैर पकड़कर गिड़गिड़ाते हुए बोली। ‘क्या बात है?’ रिपुदमन सिंह अनजान बनते हुए बोले।
साथ आए लोगों ने रिपुदमन सिंह को रामवचन की गिरफ्तारी का पूरा हाल सुना दिया।
‘हूँ! मामला गंभीर है।’ रिपुदमन सिंह सोचने का नाटक करते हुए बोले। ‘अब सब आपके हाथ में ही है मालिक।’ साथ में आए लोगों ने चिरौरी की।
‘क्यों, तुम लोग अपने नेताओं के पास क्यों नहीं चले जाते जिनको तुमने वोट दिए थे?’ रिपुदमन सिंह उलाहना देते हुए बोले।
‘वह हम लोगों की नादानी थी मालिक।’ सब लोग नजरें नीची करके बोले।
‘ठीक है तुम सब लोग पहले की तरह मेरे खेतों पर काम पर जाओ। दो-तीन दिन में धान की रोपाई हो जानी चाहिए। मैं रामवचन को छुड़वाने का बंदोबस्त करता हूँ।’ रिपुदमन सिंह ने आदेशपूर्ण स्वर में कहा। ‘बहुत अच्छा मालिक।’ सभी ने एक स्वर में कहा।
‘खाद की चोरी का मामला है। जुर्म संगीन है। दारोगा दस-पंद्रह हज़ार रुपये से कम नहीं लेगा। रुपयों का इंतजाम करके लाई हो?’ रिपुदमन सिंह ने मोरकली से पूछा। ‘मेरे पास तो फूटी कौड़ी नहीं है। ले-दे कर एक हंसुली थी, उसे गिरवी रखकर ही खाद लेने गए थे।’ मोरकली रुआंसी होकर बोली।
‘फिर क्या किया जाए?’ रिपुदमन सिंह ने एक बार फिर सोचने का अभिनय किया। ‘अब तो आपका ही सहारा है मालिक। आप ही हमें इस संकट से उबार सकते हैं।’ मोरकली गिड़गिड़ाई।
‘ठीक है मैं कहीं न कहीं से रुपयों का इंतज़ाम करके शाम तक रामवचन को छुड़ा लूँगा। मगर इसके एवज में दो साल तक तुम्हारे खेत मेरे रेहन रहेंगे। दो साल बाद जब रुपया हो जाए तो अपने खेत छुड़ा लेना। मंजूर हो तो बताओ।’ रिपुदमन सिंह ने मोरकली की ओर देखते हुए पूछा।
मोरकली सोच में पड़ गई। रामवचन ने खून पसीना एक करके खेत खरीदे थे। इन खेतों के कारण ही बिरादरी में उसका इतना मान था। खेतों को रेहन रखने का मतलब था रामवचन की आज़ादी को रेहन रख देना। मगर रामवचन को छुड़ाने का इसके सिवाय कोई उपाय भी नहीं था।
वह बोली- ’मुझे मंजूर है मालिक।’
रिपुदमन सिंह को मानों मुँह माँगी मुराद मिल गई थी।
साभार – सुरेश बाबू मिश्रा
साहित्यकार