मिस्टर रजत भाटिया मीटिंग हाल से निकलकर सीधे कार पार्किंग की ओर चल दिए। अपनी कम्पनी को यह प्रोजेक्ट नहीं मिल पाने का तनाव उनके चेहरे पर साफ झलक रहा था। वे भाटिया कन्स्ट्रक्शन ग्रुप के एम.डी. हैं। कन्स्ट्रक्शन के क्षेत्र में यह ग्रुप एक जाना माना नाम है। अफसरों से लेकर सभी पार्टियों के नेताओं से उनकी सेटिंग रहती है।
आज उनकी कम्पनी के मुकाबले उनकी प्रतिस्पर्धी कम्पनी को प्रोजेक्ट मिल जाने से वे बुरी तरह तिलमिला रहे थे। बात सिर्फ प्रोजेक्ट से होने वाले मुनाफे की नहीं थी इससे कन्स्ट्रक्शन के क्षेत्र में उनकी बादशाहत को भी तगड़ा झटका लगा था।
जब वे पार्किंग में पहुँचे तो अपनी कार के सामने एक मोटर साइकिल खड़ी देखकर उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। “किसकी है यह मोटर साइकिल ? जल्दी हटाओ यहां से“ वे जोर से चिल्लाए।
उनकी आवाज सुनकर मोटर साइकिल का मालिक जो थोड़ी दूर पर खड़ा किसी से बात कर रहा था आया और अपनी मोटर साइकिल कार के आगे से हटाने लगा।
मिस्टर भाटिया को उसका चेहरा कुछ जाना-पहचाना सा लगा। वे ध्यान से उसकी ओर देखने लगे। अरे यह तो दीपक है। उनके ग्रेजुएशन का क्लासमेट। खुशी से वे चिल्लाए-“अरे दीपक तुम।“ उनकी आवाज सुनकर दीपक कुछ देर तक उनकी ओर देखता रहा फिर वह मिस्टर भाटिया की ओर बढ़ते हुए बोला-“तुम रजत भाटिया हो ना, आज हम लोग कई वर्षों बाद मिले।
दोनों ने बड़ी गर्मजोशी से एक-दूसरे से हाथ मिलाया।
“बहुत दिनों बाद मिले हो रजत। चलो तुम्हारे साथ बैठकर काॅफी पीते हैं और बातचीत करते हैं।“
दीपक के शब्दों में गहरी आत्मीयता झलक रही थी। इसलिए रजत भाटिया इन्कार नहीं कर पाए और रेस्टोरेन्ट में जाकर बैठ गए। काॅफी पीने के दौरान दोनों कॉलेज के समय की बाते करते रहे।
दीपक ने देखा कि बातचीत के दौरान बीच-बीच में मिस्टर भाटिया के चेहरे पर चिन्ता की गहरी रेखाएं झलक आती थीं।
“क्या बात है रजत?“ बड़े परेशान दिखाई दे रहे हो?“
थोड़ी ना-नुकुर के बाद रजत भाटिया ने प्रोजेक्ट हाथ से निकल जाने वाली बात दीपक को बताई।
“बस! इतनी सी बात से इतना परेशान हो गए। मेरी ओर देखो दस सालों से एक कम्पनी में काम कर रहा था। तीन महीने पहले उन्होंने आर्थिक मन्दी की बात कहकर कम्पनी से निकाल दिया।“ दीपक बोला, क्या ? रजत भाटिया ने हैरत से दीपक की ओर देखते हुए कहा।
“हाँ रजत! कुछ दिन मैं भी बहुत तनाव में रहा मगर फिर मैंने सोचा कि जो चीज हमारे बस में नहीं है उसे सोच-सोच कर क्यों परेशान रहें? और क्यों बेकार का तनाव झेलें।“
अब तुम क्या करोगे दीपक?“ मिस्टर भाटिया ने सवालिया निगाहों से दीपक की ओर देखते हुए पूछा।“ करना क्या है पिछले दिनों तीन-चार कम्पनियों में इंटरव्यू दिया है और मुझे पूरी उम्मीद है कि जल्दी ही कहीं न कहीं जॉब मिल जाएगी।“ उसके स्वर में गहरा आत्मविश्वास झलक रहा था।
काफी समय के साथ बिताने के बाद मिस्टर भाटिया ने दीपक से विदा ली और कार स्टार्ट करके चल दिए। अब उनका सारा तनाव काफूर हो गया था और मन काफी हल्का हो गया था।
साभार – सुरेश बाबू मिश्रा
साहित्य भूषण