रामायण की अनजानी पात्र श्रुतिकीर्ती

वाल्मीकि रामायण हमारा प्रमुख धार्मिक ग्रंथ है। हमारे समाज में इसे केवल पढ़ा ही नहीं पूजा भी जाता है ।रामायण संस्कृति, संस्कारों एवं आदर्शों की त्रिवेणी है। रामायण में बहुत सारे पात्र लोगों की जुवान पर है। आम आदमी भी उनके बारे में भली भांति जानता है । ऱाम ,लक्ष्मण, सीता ,भरत ,हनुमान ऐसे ही पात्र हैं ।मगर कुछ ऐसे भी पात्र हैं जिनसे अधिकांश लोग अनजान हैं । रामायण की ऐसी ही एक पात्र है श्रुति कीर्ति।
श्रुतकीर्ति राजा जनक के छोटे भाई राजा कुशध्वज की पुत्री थी। कुशध्वज मिथिला के राजा निमि के पुत्र और राजा जनक के छोटे भाई थे। श्रुतकीर्ति की माता का नाम रानी चंद्रभागा था। श्रुतकीर्ति का विवाह भगवान राम के अनुज शत्रुघ्न से हुआ था।श्रुतिकीर्ति बहुत सुंदर सुशील और पतिब्रता स्त्री थीं ।
श्रुतकीर्ति के दो पुत्र हुए, शत्रुघति और सुबाहु।
शत्रुघ्न, राजा दशरथ के चौथे पुत्र थे, उनकी माता का नाम सुमित्रा था।
कहते हैं कि एक बार श्रुतकीर्ति रात को छत पर टहल रही थी। मात कौ‍शल्या ने उन्हें देखा तो पहरेदार से उन्हें बुलाने का कहा। वह आईं तब माता कौशल्या ने पूछा की तुम अकेले छत पर क्यों टहल रही हो शत्रुघ्न कहां है? यह सुनकर श्रुतकीर्ति ने कहाकि माता उन्हें तो मैंने तेरह वर्षों से नहीं देखा हैं।
यह सुनकर माता कौशल्या बहुत दु:खी हुई और बे आधी रात को ही सैनिकों के साथ खुद शत्रुघ्न की खोज में निकल पड़ी। सभी जगह पूछा तो पता चला कि वे नंदीग्राम में हैं। नंदीग्राम में भरतजी कुटिया बनाकर रहते थे ।बे वहीं से राजकाज देखा करते थे। माता कौशल्या वहां पहुंची तो उन्होंने देखा कि जहां भरत कुटिया बनाकर तपस्वी भेष में रहते थे। उसी कुटिया के बाहर एक पत्थर की शिला पर अपनी बांह का तकिया बनाकर शत्रुघ्न सोए हुए थे।
माता ने जब उनको इस तरह सोए हुए देखा तो उनका हृदय कांप उठा। शत्रुघ्न ने जैसे ही मां की आवाज सुनी तो, वो उठ खड़े हुए और माता को प्रणाम कर बोले, माता! आपने यहां आने का कष्ट क्यों किया। मुझे ही बुला लिया होता।’ माता ने बड़े प्यार से जवाब दिया क्यों, एक मां अपने बेटे से मिलने नहीं आ सकती। मैं भी आज अपने बेटे से ही मिलने आई हूं। लेकिन तुम इस हालत में यहां क्यों सोए हो।’
शत्रुघ्न का गला रुंध गया। वो बोले, मां। बड़े भैया राम पिता की आज्ञा से वन चले गए। भैया लक्ष्मण उनके साथ चले गए। और भैया भरत भी नंदीग्राम में कुटिया बनाकर मुनि भेष धारण कर रह रहे हैं। क्या ये राजमहल, राजसी ठाट-बाट सब विधाता ने मेरे ही लिए बनाए हैं?
माता कौशल्या इस सवाल का कोई जबाब नहीं दे पाई और वह एकटक शत्रुघ्न को निहारती रही। दरअसल शत्रुघ्न राजसी भेष में रहकर राजकाज का काम जरूर करते थे। लेकिन उन्होंने भी अपनी पत्नी श्रुतकीर्ति से दूरी बना ली थी। और राजमहल की भोग-विलासिता का भी त्याग कर दिया था।
रामायण में हम सब सीता के त्याग के बारे में पढ़ते हैं ।सीता तो जगत जननी है ।उनका त्याग तो सर्वोपरि था ।उनका तो पूरा जीवन ही संघर्षों में बीता ।मगर लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला, भरत की पत्नी मांडवी और शत्रुघन की पत्नी श्रुति कीर्ति का त्याग भी अद्वितीय था । इन तीनों के बारे में आम पाठक बहुत कम जानते है। बाद में शत्रुघ्न को मथुरा का राजा बनाकर श्रुतकीर्ति के साथ उन्हें वहां रहने की आज्ञा दी गई थी।यहां श्रुतिकीर्ति को लम्बे बिछोह के बाद अपने पति के साथ सुखपूर्वक रहने का सुअवसर मिला ।इस प्रकार रामायण की मुख्य पात्र होते हुए भी बे लोगों के लिए अनजान रहीं ।

साभार – सुरेश बाबू मिश्रा
सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य

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