राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा से नारी वर्ग में राष्ट्र सेविका समिति नामक संगठन चलता है। इसकी तीसरी प्रमुख संचालिका वंदनीया उषाताई चाटी का जन्म भंडारा , महाराष्ट्र के फणसे परिवार में 31 अगस्त, 1927 को हुआ था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा भंडारा के मनरो हाई स्कूल में हुई। वहां श्रीमती नानी कोलते समिति की शाखा लगाती थीं। उसी में उषाजी ने जाना प्रारम्भ किया। मधुर कंठ की धनी उषाजी धीरे-धीरे समिति से एकाकार हो गयीं। इसी दौरान उन्होंने बी.ए और बी.टी. की डिग्री भी प्राप्त की।
1948 में उनका विवाह नागपुर में एक स्वयंसेवक श्री गुणवंत चाटी से हुआ। उषाजी ने भंडारा की जकातदार कन्याशाला में और विवाह के बाद नागपुर की हिन्दू मुलींची शाला में पढ़ाया। भूगोल और मराठी उनके प्रिय विषय थे। छात्राओं के विकास एवं उन्हें अच्छा वक्ता बनाने के लिए उन्होंने ‘वाग्मिता विकास समिति’ बनायी, जिसकी 30 साल तक वे अध्यक्ष रहीं। श्री गुणवंत चाटी 1948 में संघ के प्रतिबंध काल में सत्याग्रह कर जेल गये थे। उषाजी कुछ समय पूर्व ही घर में सबसे बड़ी बहू बनकर आयी थीं। उस कठिन परिस्थिति में धैर्यपूर्वक उन्होंने पूरे परिवार को संभाला।
सामाजिक कामों में रुचि होने के चलते परिवार और अध्यापन में संतुलन बनाते हुए वे क्रमशः समिति में सक्रिय होने लगीं। पहले उन्हें नागपुर नगर कार्यवाह और फिर विदर्भ प्रांत कार्यवाह का काम दिया गया। इससे उनका प्रवास का क्रम प्रारम्भ हो गया। अब वे सबके लिए उषाताई हो गयीं। उनका कंठ बहुत मधुर था। वे आकाशवाणी नागपुर से कार्यक्रम भी देती थीं। 1970 में समिति में उन्हें अखिल भारतीय गीत प्रमुख की जिम्मेदारी दी गयी। 1975 में देश में आपातकाल लगने पर उषाताई ने सत्याग्रह कर इसका विरोध किया। अतः उन्हें जेल में भी रहना पड़ा। उन्होंने अपने प्रेमपूर्ण व्यवहार से वहां बंदी महिलाओं को धैर्य बंधाया और कष्ट सहने की मानसिकता निर्माण की।
आपातकाल के बाद 1977 में उन्हें उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में संगठन विस्तार पर ध्यान देने को कहा गया। सब कामों में सामंजस्य बैठाते हुए उन्होंने कई बार उ.प्र. का सघन प्रवास किया। 1982 में पति के निधन के बाद उन्होंने पूरा समय समिति के काम में ही लगा दिया। वे घर की बजाय अब समिति के कार्यालय (अहल्या मंदिर) में ही रहने लगीं। वहां वनवासी बालिकाओं का एक छात्रावास भी चलता है। उन दिनों ताई आप्टे राष्ट्र सेविका समिति की प्रमुख संचालिका थीं। उन्होंने उषाताई को समिति में सह प्रमुख संचालिका की जिम्मेदारी दी। 1991 से वे विश्व हिन्दू परिषद की केन्द्रीय बैठकों में भी जाती थीं। 1994 में ताई आप्टे के निधन के बाद वे समिति की प्रमुख संचालिका बनीं।
2005 में नागपुर के पास खापरी में उनके नेतृत्व में दस हजार सेविकाओं का एक भव्य कार्यक्रम हुआ। प्रवास के दौरान समस्याग्रस्त क्षेत्रों में कई बार पुलिस की गाड़ी या सेना के ट्रक पर भी उन्हें यात्रा करनी पड़ी; पर उन्होंने कभी इसकी चिंता नहीं की। वृद्धावस्था में उन्हें कई रोगों ने घेर लिया। इनमें घुटने का दर्द विशेष था। फिर भी उन्होंने अपना प्रवास कभी स्थगित नहीं किया। अपनी सहयोगी एवं युवा कार्यकर्ताओं पर उन्हें बहुत विश्वास था। वे खुलकर उनकी प्रशंसा करती थीं तथा बहुत सहजता से उन्हें काम सौंप देती थीं। वे सब भी पूरी ताकत लगाकर उसे पूरा करती थीं। सेविकाओं के आग्रह पर वृद्धावस्था में भी वे गीत गाने में संकोच नहीं करती थीं।
उषाताई को देश की अनेक संस्थाओं ने सम्मानित किया। कई पुरस्कारों के साथ कुछ धनराशि भी मिलती थी। वह सारी राशि वे ‘संघमित्रा सेवा संस्थान’ को दे देती थीं। 17 अगस्त, 2017 को त्याग, प्रेम और समर्पण की प्रतिमूर्ति वंदनीय उषाताई चाटी का निधन समिति के नागपुर कार्यालय में ही हुआ।
साभार – सुरेश बाबू मिश्रा
साहित्य भूषण